तुम
एकबार फिर
लौटकर आओगे,
मेरे मन में ये उम्मीद
जगा जाते,
तुम्हारी याद में आंसू बहाकर
जिन्हें अबतक सींचती रही .
मेरे सपने का वो सूखता गुलाब
बचा जाओगे
बस इतना भरोसा दिला जाते.
अब
जब तुम्हारा आना
अनिश्चित
और
इस गुलाब का सूख जाना
निश्चित है
तो सोचती हूँ
उस दिन
रोते-रोते
अचानक
चुप क्यों हो गई थी मैं.
तब तो
मैं ही हुई न
इस गुलाब की हत्यारिन
क्योंकि उस दिन के बाद...
कभी रोई नहीं हूँ मैं.
काश !
एकबार तुम आ जाते,
मेरी आँखों को
थोड़ी नमी दे जाते
और
दे जाते
गुलाब को नया जीवन,
मेरी पहचान बन जाते.
बेहद कोमल भावों से लिखी गई... खूबसूरत कविता...
ReplyDeleteमेरी आँखों को
ReplyDeleteथोड़ी नमी दे जाते
और
दे जाते
गुलाब को नया जीवन,
मेरी पहचान बन जाते.
-बहुत भावभीनी...
काश !
ReplyDeleteएकबार तुम आ जाते,
मेरी आँखों को
थोड़ी नमी दे जाते
और
दे जाते
गुलाब को नया जीवन,
मेरी पहचान बन जाते.
मन के भाव बखूबी अभिव्यक्त हुए है ...आपका आभार
Dr.Danda Lakhnavi to me
ReplyDeletevery nice poetry
बड़ी ही कोमल प्रेमाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमेरी आँखों को
ReplyDeleteथोड़ी नमी दे जाते
और
दे जाते
गुलाब को नया जीवन,
मेरी पहचान बन जाते.
बहुत खूब लिखा है...
सूखे गुलाब ....प्यार में इंतज़ार का अच्छा मेल करवाया है ...प्यार और इंतज़ार बहुत खुबसूरत मिश्रण
ReplyDeleteकोमल भावो को कहते हुए सुन्दर नज़्म
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteNirmla Kapila to me
ReplyDeleteतब तो
मैं ही हुई न
इस गुलाब की हत्यारिन
क्योंकि उस दिन के बाद...
कभी रोई नहीं हूँ मैं.
सुन्दर भावमय रचना। शुभकामनायें।
काश !
ReplyDeleteएकबार तुम आ जाते,
मेरी आँखों को
थोड़ी नमी दे जाते
भावमय करते शब्द ।
काश !
ReplyDeleteएकबार तुम आ जाते,
मेरी आँखों को
थोड़ी नमी दे जाते
और
दे जाते
गुलाब को नया जीवन,
मेरी पहचान बन जाते.
बहुत सुंदर भावभीनी प्रस्तुति. शुभकामनायें.
artijha jha to me
ReplyDeleteमेरी आँखों को
थोड़ी नमी दे जाते
और
दे जाते
गुलाब को नया जीवन,
मेरी पहचान बन जाते............lajabab panktiya...rone ke lie kisi ke aane ki kya jarurat hai...aaine ke saamne baith kar hum hanste hai,ro lete hai...yhi ada hai zine ki jo aapko bhi aani chahie....
बरस जाने वाली घनीभूत पीड़ा.
ReplyDeleteshephali srivastava to me
ReplyDeletebahut khubsoorat likha ha
khubasurati se likhi rachna..bahut sundar
ReplyDeletesundar abhivaykti....
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
bahut sunder bhavpoorn rachna..
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी कविता.
ReplyDeletefrom ***punam***
ReplyDeleteकाफी कोशिशों के बावजूद भी अपने विचार आप तक पहुंचाने में समर्थ हुई हूँ..!
hide details 8:00 AM (28 minutes ago
"अब
जब तुम्हारा आना
अनिश्चित
और
इस गुलाब का सूख जाना
निश्चित है
तो सोचती हूँउस दिन
रोते-रोते
अचानक
चुप क्यों हो गई थी मैं."