जब कभी देखता हूँ
अपने चारो ओर,
हर तरफ दिखाई देता है
जवानी का जलवा,
हर तरफ सुनाई देता है
जवानी का शोर.
समय के शिखर पर खड़ा
बुढ़ापा देखता रहता है चुप-चाप
जीवन में आता बदलाव,
स्वयं को पाता है
लेटा हुआ
शर-शैय्या पर
भीष्म सा.
चारो ओर होती
सिर्फ कौरवों-पांडवों की भीड़,
उसके शाम की
कहाँ होती है भोर......
भारत में महाभारत.
ReplyDeleteउसकी शाम की भोर तो नव जीवन का प्रमाण है……………
ReplyDeleteसंक्षिप्त किन्तु गंभीर रचना.. वास्तव में उम्र जो निकल जाती है उसकी भोर कहाँ आती है... जीवन से संध्या वेला का मनोवैज्ञानिक चित्रण !
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeletebahut sunder aur gahri bat...
ReplyDeleteयौवन की स्तुति होती है हर ओर।
ReplyDeleteकहते हैं दिल जवान होना चाहिए पर जब शरीर ही साथ छोड़ने लगे तो निराशा और दुविधा होती है । यथार्थपरक रचना ।
ReplyDeleteमेरे सपने आज भी मचलते हैं
ReplyDeleteमेरे ज़ज्बात
मुझसे अब
रिहाई मांगते हैं|
bahut hi badhiyaa
बढ़िया रचना....
ReplyDeleteबुढ़ापे की भोर नहीं होती
ReplyDeleteपर फिर भी आने वाली रात और दिन ढलते सूरज से ही रौशनी पाते हैं
उम्दा रचना
बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteगया वक़्त लौट कर नहीं आता ..और यह मन जब उस वक़्त को याद करता है तो तब वह बदला हुआ नजर आता है ..एक गंभीर और सम्यक भाव को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त किया है आपने ...आपका आभार
ReplyDeletebudhape ko bhism pitamah se tulna karna bha gaya......:)
ReplyDeleteदिल की कसक नज़र आती है ....ये वक़्त हर किसी पे आएगा ...मन के भावो की अभिव्यक्ति भा गई भैया
ReplyDeletewaah ..what a thought
ReplyDeleteइस भीड़ से मौत आने पर ही छुटकारा मिलता है ...
ReplyDeleteगंभीर रचना है ...
shyam kori 'uday' to me
ReplyDeleteshow details Jul 15
... प्रसंशनीय रचना, बधाई !!
अंग्रेजी के कवि हुए हैं एडवर्ड थामस ... उनकी एक कविता है ओल्ड मैन... उसको पढ़ कर देखिये राजीव सर आपको अपनी कविता सी लगेगी... जीवन के संध्या पक्ष को कौन रौशनी देता है... बढ़िया कविता है.... एडवर्ड थामस की कविता के कुछ अंश...
ReplyDelete" Where first I met the bitter scent is lost.
I, too, often shrivel the grey shreds,
Sniff them and think and sniff again and try
Once more to think what it is I am remembering,
Always in vain. I cannot like the scent,
Yet I would rather give up others more sweet,
With no meaning, than this bitter one.
I have mislaid the key. I sniff the spray
And think of nothing; I see and I hear nothing;
Yet seem, too, to be listening, lying in wait
For what I should, yet never can, remember; "
स्वयं को पाता है
ReplyDeleteलेटा हुआ
शर-शैय्या पर
भीष्म सा.
चारो ओर होती
सिर्फ कौरवों-पांडवों की भीड़,
उसके शाम की
कहाँ होती है भोर......
namaskaar !
behad achchi panktiyaa hai , sadhwad .bhaav boh waali kavitaa . badhai .
sadar
truly keep writing..all the best
ReplyDeletewaah... aapki "budhapa hota hai" rachna padhee, aur ab ye... aisa lagta hai jiase life ki do stages ko padh rahi hu...
ReplyDeletebahut khoob...
bahut achha likha hai
ReplyDeleteshubhkamnayen