तुम्हें तो पा लिया,बेटे
लेकिन खो दिए हैं
तेरे इंतजार में बीते
बैचैनी-भरे
पल.
पल जो मन को तरसाते थे,तड़पाते थे,
आशा और निराशा के भंवर में घुमाते थे.
तेरे आने की बात
मन को गुदगुदाती थी ,
तुम्हारे ना आने की बात
हमें डराती थी,
कराती थी विवशताओं का अहसास ,
ह्रदय को शंकाओं से भर जाती थी.
तेरे आते ही ख़त्म हो गए
बेकरारी भरे पल,
ख़त्म हो गया
अजन्में का इन्तजार,
भर गया घर का कोना-कोना
आनंद के अतिरेक से.
तुम्हारे आने से
जीवन को मिल गई है
नई उर्जा,नई दिशा,
मिल गई है एक नई राह
चलने के लिए,
मिल गया है नया आकाश,
नया सूरज,नया चाँद
चमकता हुआ,
रिश्तों की छांव में
जीवन सजाने के लिए .
बेहद कोमल और खूबसूरत एहसास की कविता...
ReplyDeleteतुम्हें तो पा लिया,बेटे
ReplyDeleteलेकिन खो दिए हैं
तेरे इंतजार में बीते
बैचैनी-भरे
पल.
पल जो मन को तरसाते थे,तड़पाते थे,
आशा और निराशा के भंवर में घुमाते थे.
...बेहद खूबसूरत एहसास
सुन्दर! एक पेरेंट के हृदय की अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteइस ख़ुशी में बेचैनी घबराहट के पल स्पष्ट हैं ...
ReplyDeleteरिश्तो की महक से महकती आपकी कविता
ReplyDeleteबेटे के आने से दिल खुश है और मन की चिंता बरक़रार ... ये आपकी लेखनी से पता चलता है भैया
यही तो होता है...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने....
कविता अच्छी लगी।
ReplyDeleteरिश्तों की सही पहचान दिल और दिमाग को नयी ऊंचायिओं पर ले जाते है. बहुत उम्दा प्रस्तुति सीधे दिल से निकली और दिल को छूती.
ReplyDeleteजीवन में राहें अनेक हैं, जीने के बहाने अनेक हैं।
ReplyDeletevandana gupta to me
ReplyDelete"बहुत सुन्दर ख्याल सजाये है।"
Rekha Srivastava to me
ReplyDeleteराजीव भाई,
बहुत सुंदर भावों को उकेरा है. मेरा लैपटॉप बीमार है, दूसरे के से काम चला रही हूँ, इसलिए टिप्पणी नहीं दे पा रही हूँ.
नए जुड़ रहे रिश्ते में बेचनी और ख़ुशी के मिश्रित भाव ...
ReplyDeleteसुन्दर एहसास !
tkgiri1@gmail.com to me
ReplyDeleteBahut hi sundar
कोमल अहसासों से लबरेज़ अच्छी कविता.
ReplyDeleteDear Rajiv sir
ReplyDeleteafter a long long time I happen to come online and read your magnificent poem... while reading your poem..I just recall Thomos Hardy's poem UNBORN written in 1905... Sir your literary sensibility is truly European .... read and enjoy that poem also....
"I rose at night, and visited
The Cave of the Unborn:
And crowding shapes surrounded me
For tidings of the life to be,
Who long had prayed the silent Head
To haste its advent morn.
Their eyes were lit with artless trust,
Hope thrilled their every tone;
"A scene the loveliest, is it not?
A pure delight, a beauty-spot
Where all is gentle, true and just,
And darkness is unknown?"
My heart was anguished for their sake,
I could not frame a word;
And they descried my sunken face,
And seemed to read therein, and trace
The news that pity would not break,
Nor truth leave unaverred.
And as I silently retired
I turned and watched them still,
And they came helter-skelter out,
Driven forward like a rabble rout
Into the world they had so desired
By the all-immanent Will."
भावों को बहुत ही भावुक अभिव्यक्ति दी है आपने....
ReplyDeleteमन को छू गयी रचना...
bahut achi kavita
ReplyDeletelikte rahiye
आप सभी का बहुत-बहुत आभार.
ReplyDeletemann ke bhav ujagar ho rahe rachna me...sundar
ReplyDeleteभावों से परिपूर्ण...
ReplyDeleteaaj lagta hai aaki alag-alag rachnaon ko padhkar mai jeevan ke har charan ka nazara dekh loongi...
ReplyDeleteaur bas waah waah hi karti rah jaungi...