तुम तक जाना है मुझे
समय कटता नहीं,
विरह में जलता हूँ,
हसरत-भरी निगाहों से
देखता हूँ
सामने
सड़क के पार
जहाँ है तुम्हारा घर
हरियाली के बीच.
हमदोनों के घरों के बीच
है चिलचिलाती धूप
जेठ की दोपहरी की
हैं दरारों भरे सूखे खेत,
जहाँ चलते हैं
लू के बेरहम थपेड़े
गर्म हवाओं में बहता है
पानी का भरम.
दिखता है चारो ओर
पानी ही पानी ,
प्यास ही प्यास.
रास्ते लगते हैं
ठिठककर ठहरे हुए.
चाहत और दूरियां
चलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
ख़ुशी बस इतनी सी है
तुम बस जाओगी
मेरी यादों में
एक तड़प बनकर.
तड़प
जो इंतजार करना सिखाता है,
औरों के लिए
जीना-मरना सिखाता है.
(अतीत से वर्तमान तक से पोस्ट किया गया पुराना पोस्ट है)
सचमुच कहीं तक की यात्रा करा गई यह कविता... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteचाहत और दूरियां
ReplyDeleteचलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
सच में कुछ सम्बन्ध समानान्तर रेखा बन कर रह जाते हैं...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना..
चाहत और दूरियां
ReplyDeleteचलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
...truth.
वाह .. बहुत खूब कहा है ...।
ReplyDeleteतड़प
ReplyDeleteजो इंतजार करना सिखाता है,
औरों के लिए
जीना-मरना सिखाता है.
इंतज़ार का भी एक मज़ा है.
सुन्दर है ये इंतज़ार भी
ReplyDeletetadap jaanleva bhi hai aur zindgi ka sabab bhi.
ReplyDeletesunder abhivyakti.
चाहत और दूरियां
ReplyDeleteचलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
बहुत अच्छी लगीं पंक्तियां....
यही तड़प है जो शान्ति से बैठने भी नहीं देती है।
ReplyDeleteये तड़प और ये सोच ...हर छोटी बड़ी बात की ...जीने भी नहीं देती
ReplyDeleteचाहत और दूरियां
ReplyDeleteचलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
एक-दूसरे के समानान्तर.
ReplyDeleteन दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना..
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
yahi tadap yahi junoon to zindgi hai ....
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