Wednesday, June 8, 2011

"मेरी पहचान बन जाते"

तुम
एकबार फिर
लौटकर आओगे,
मेरे मन में ये उम्मीद
जगा जाते,
तुम्हारी याद में आंसू बहाकर
जिन्हें अबतक सींचती रही .
मेरे सपने का वो सूखता गुलाब
बचा जाओगे
बस इतना भरोसा दिला जाते.

अब
जब तुम्हारा आना
अनिश्चित
और
इस गुलाब का सूख जाना
निश्चित है
तो सोचती हूँ
उस दिन
रोते-रोते
अचानक
चुप क्यों हो गई थी मैं.

तब तो
मैं ही हुई न
इस गुलाब की हत्यारिन
क्योंकि उस दिन के बाद...
कभी रोई नहीं हूँ मैं.

काश !
एकबार तुम आ जाते,
मेरी आँखों को
थोड़ी नमी दे जाते
और
दे जाते
गुलाब को नया जीवन,
मेरी पहचान बन जाते.

24 comments:

  1. बेहद कोमल भावों से लिखी गई... खूबसूरत कविता...

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  2. मेरी आँखों को
    थोड़ी नमी दे जाते
    और
    दे जाते
    गुलाब को नया जीवन,
    मेरी पहचान बन जाते.

    -बहुत भावभीनी...

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  3. काश !
    एकबार तुम आ जाते,
    मेरी आँखों को
    थोड़ी नमी दे जाते
    और
    दे जाते
    गुलाब को नया जीवन,
    मेरी पहचान बन जाते.
    मन के भाव बखूबी अभिव्यक्त हुए है ...आपका आभार

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  4. Dr.Danda Lakhnavi to me


    very nice poetry

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  5. बड़ी ही कोमल प्रेमाभिव्यक्ति।

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  6. मेरी आँखों को
    थोड़ी नमी दे जाते
    और
    दे जाते
    गुलाब को नया जीवन,
    मेरी पहचान बन जाते.

    बहुत खूब लिखा है...

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  7. सूखे गुलाब ....प्यार में इंतज़ार का अच्छा मेल करवाया है ...प्यार और इंतज़ार बहुत खुबसूरत मिश्रण

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  8. कोमल भावो को कहते हुए सुन्दर नज़्म

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  9. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना!

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  10. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  11. वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब

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  12. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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  13. Nirmla Kapila to me

    तब तो
    मैं ही हुई न
    इस गुलाब की हत्यारिन
    क्योंकि उस दिन के बाद...
    कभी रोई नहीं हूँ मैं.
    सुन्दर भावमय रचना। शुभकामनायें।

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  14. काश !
    एकबार तुम आ जाते,
    मेरी आँखों को
    थोड़ी नमी दे जाते

    भावमय करते शब्‍द ।

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  15. काश !
    एकबार तुम आ जाते,
    मेरी आँखों को
    थोड़ी नमी दे जाते
    और
    दे जाते
    गुलाब को नया जीवन,
    मेरी पहचान बन जाते.

    बहुत सुंदर भावभीनी प्रस्तुति. शुभकामनायें.

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  16. artijha jha to me


    मेरी आँखों को
    थोड़ी नमी दे जाते
    और
    दे जाते
    गुलाब को नया जीवन,
    मेरी पहचान बन जाते............lajabab panktiya...rone ke lie kisi ke aane ki kya jarurat hai...aaine ke saamne baith kar hum hanste hai,ro lete hai...yhi ada hai zine ki jo aapko bhi aani chahie....

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  17. बरस जाने वाली घनीभूत पीड़ा.

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  18. shephali srivastava to me

    bahut khubsoorat likha ha

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  19. khubasurati se likhi rachna..bahut sundar

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  20. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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  21. कोमल भावों से सजी कविता.

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  22. from ***punam***
    काफी कोशिशों के बावजूद भी अपने विचार आप तक पहुंचाने में समर्थ हुई हूँ..!

    hide details 8:00 AM (28 minutes ago
    "अब
    जब तुम्हारा आना
    अनिश्चित
    और
    इस गुलाब का सूख जाना
    निश्चित है
    तो सोचती हूँउस दिन
    रोते-रोते
    अचानक
    चुप क्यों हो गई थी मैं."

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