किस गरल की बात करतें है,शिव,
उस गरल की
समुद्र-मंथन के बाद
जिसका किया था आपने पान
सिर्फ एकबार
विश्व बचाने को,
कहलाये
कालजयी मृत्युंजय .
हम सृष्टि के सूत्र-धार
स्नेह और प्यार से
सींचते रहे जीवन निरंतर
चलाते रहे जीवन-चक्र,
मृत्युपर्यंत बचाते रहे
प्रकृति का अस्तित्व.
बदले में क्या मिला?
अवहेलना और उत्पीड़न का अंतहीन दौर,
बंद रखे गए हमारे लिए बाहर के द्वार,
करने के लिए घर का चौखट पार
करना पड़ा हमें एक लम्बा इंतजार .
पुरुष और प्रकृति को था
हमारा मौन समर्थन,समर्पण
फिर भी पीते रहे हैं सदियों से
जहर ज़माने का
बिना उफ़ किये
अकारण
त्रेता में
सीता और अहिल्या बनकर ,
द्वापर में द्रौपदी बनकर.
झेलते रहे अपहरण,
चीरहरण का दंश.
फिर भी हमें नहीं मिला शिवत्व,
नहीं मिला हमारे नारीत्व को मान,
हम सिर झुकाए ढोते रहे
समाज का छद्म सम्मान,
जीते रहे ये सोचकर
कभी तो मिलेगा हमें भी
आप जैसा सम्मान .
shiv ko kiya niruttar , stabdh !
ReplyDeletemera to mann shiv ko dekh raha hai , koi hal nahi mil raha unko
शिव हंसकर बोले...
ReplyDeleteया देवी सर्वभूतेषु माया रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
शिव कहेंगे...
ReplyDeleteइसलिए तो ये युग न तो त्रेता है और ही द्वापर...
क्योंकि तब कम-से-कम सीता, राधा, रुक्मिणी, द्रौपदी की आन का कुछ तो महत्व था
परन्तु अब...
अब तो कलयुग भी खत्म हो घोर-कलयुग लग गया है
जहाँ न तो किसी का सम्मान है
और न ही आन या उसका महत्व...
यही कहकर शायद शिव जी न अपने नेत्र बंद कर लिए
और वो भी युग बदलने का इंतज़ार कर रहे हैं...
फिर भी हमें नहीं मिला शिवत्व,
ReplyDeleteनहीं मिला हमारे नारीत्व को मान,
हम सिर झुकाए ढोते रहे
समाज का छद्म सम्मान,
बहुत सटीक विचार ....न जाने कब तक यह गरल पीती रहेगी नारी ...सुन्दर अभिव्यक्ति
गरल पीने वालों का पर इतिहास सम्मान करेगा, वर्तमान तो संभवतः भोलानाथ ही कहे।
ReplyDeleteफिर भी हमें नहीं मिला शिवत्व,
ReplyDeleteनहीं मिला हमारे नारीत्व को मान,
हम सिर झुकाए ढोते रहे
समाज का छद्म सम्मान,
जीते रहे ये सोचकर
कभी तो मिलेगा हमें भी
आप जैसा सम्मान
बहुत ही सुंदर.... गहराई से परिपूर्ण विचारों की प्रस्तुति.....
हम सिर झुकाए ढोते रहे
ReplyDeleteसमाज का छद्म सम्मान,
जीते रहे ये सोचकर
कभी तो मिलेगा हमें भी
आप जैसा सम्मान .
शायद शिव ने खुद जहर पीया था इसी लिये हमे भी यही सन्देश देते हैं प्रवीन जी ने सही कहा है। अच्छी लगी रचना। धन्यवाद।
सनातन कथाओं से बिम्ब उठाकर नई बात कहने की सार्थक कोशिश... सुन्दर कविता... नारी विमर्श को प्रेरित करती कविता...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..........
ReplyDeleteबस विष पी लेते से ही अगर कोई शिव बन सके तो हर घर में एक शिव खड़ा हो जाएगा ...
ReplyDeleteमन के भाव का द्वंद है ये रचना ...बहुत ही लाजवाब ...
फिर भी हमें नहीं मिला शिवत्व,
ReplyDeleteनहीं मिला हमारे नारीत्व को मान,
हम सिर झुकाए ढोते रहे
समाज का छद्म सम्मान,
जीते रहे ये सोचकर
कभी तो मिलेगा हमें भी
आप जैसा सम्मान
बहुत खूबसूरत रचना...बधाई
bahut sundar likha aur sundar sa savaal jo hamesha anuttarit rahega.
ReplyDeleteप्रश्न करती है रचना और उत्तर मे सभी निरुत्तर हो जाते हैं…………गम्भीर सोच।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसत्य कहा...
ReplyDeleteप्रभावशाली ढंग से आपने स्थिति का रेखांकन किया है...
बहुत बहुत सुन्दर रचना.!!!!
behad sunder rachna gambheer arthon ko saheje hue....
ReplyDeleteगरल पान करने वाले क्यूँ भला प्रश्न करेंगे....
ReplyDeleteगरलपान करने और नीलकंठ होने में भेद है शायद...!
शिवत्व मिल जाए फिर प्रश्न कहाँ शेष रह जायेंगे...
प्रभावशाली भाव को ले कर बुनी गयी रचना!
manish badkas to me
ReplyDeleteबोले शिव मुस्कुरा
में सदैव पीता हूँ गरल बस यूँ ही
तुम समझो
मान-सम्मान की चाह
तो चलो यूँ ही सही..
तुम सूत्र-धार
तुम स्नेह
तुम प्यार
तुम जीवन-चक्र धारी
तुम अवतारी
प्रकृति के रक्षक
जब सब-कुछ ही तुम
तो मान-सम्मान के लिए
किस से मांगते हो ये भीख..??
राजा होकर भी भिखारी ही रहना चाहो
तो मर्ज़ी तुम्हारी..
बदले में क्या मिला ?
ये पूछने को तुम्हें मैं ही मिला..
जाओ पहले खंगालो
शास्त्रों के कुछ पन्ने
मिलेगा वहां से भी कुछ नहीं तुम्हें
मैं के शिवा
Devendra jee ne bahut sahi kaha.....:)
ReplyDeleteek sarvshresth rachna...!!
आदरणीय राजीव सर नमस्कार ! आपके ब्लॉग की तमाम कवितायें उत्कृष्ट हैं.. आपकी प्रतिभा से अभिभूत हूँ.. वर्तमान कविता में आपने इश्वर कि सत्ता में भी पुरुषवादी अवधारणा को चुनौती दी है.. कविता में शायद पहली बार ऐसा कहा गया है... आपकी संवेदना अंग्रेजी के metaphysical poets से मिलतीजुलती है... खास तौर पर कुछ कविताओं में जॉन डन का प्रभाव भी है आपमें...
ReplyDeleteबहुत सटीक विचार, बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletekuchh prashn mann mein uth jaayen aur soch ko vistrit aayam, achhi rachna, badhai sweekaaren.
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