Friday, March 12, 2010

अहसास

पा लिया है तुम्हें
लेकिन खो दिया है तुम्हें न पाने का डर
जो हमारे मन को हर पल डराता था,
तरसाता था , तड़पाता था ,
मंझधार में फंसें मन को
आशा और निराशा के हिंडोले पर झुलाता था ।
तेरे आने की बात मन को गुद-गुदाती थी ,
तेरे न आने का ख्याल और अपनी बेबसी का एहसास
अजीब सी तड़प छोड़ जाते थे ।
सपनों के संसार संजोए थे हमने ,
जहाँ हम थे,तुम थे बस ।
तेरे आते ही सब टूट गए
ख़त्म हो गई बेकरारी ,ख़त्म हो गया इन्तजार
पर निराश नहीं हैं हम ।
हमें मिल गया है तेरा क्रन्दन
मिल गयी है तेरी मुस्कान
और जीवन को मिल गया है-
एक अर्थ ।

3 comments:

  1. अनुभवों को तराशने की प्रक्रिया सुखद होती है।

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  2. "हमें मिल गया है तेरा क्रन्दन
    मिल गयी है तेरी मुस्कान
    जीवन को मिल गया है एक अर्थ । "
    राजीव जी आपकी कविता इन्ही तीन पंक्तीयोन में है... कई बार क्रंदन में भी जीवन होता है... क्रंदन से जीवन को अर्थ मिल जाता है... सुंदर एहसास...

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  3. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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