Wednesday, January 27, 2010

अब कबूतर नहीं उड़ायेंगे

हम अमन का पाठ पढ़ाते हैं
इंसानीयत को अपना ईमान बनाते हैं ,
हम इंसान बनाते हैं , इंसान
लोगों को बुद्ध और ईसा की बातें सिखाते हैं
राम, रहीम की राह दिखाते हैं ।
हैवान नहीं बनाते।

कैसे हो तुम लोग
अपनों को ही बरगलाते हो
जन्नत का ख्वाब दिखाकर
"मानव बम " बनाते हो
इंसान और इंसानियत के चीथड़े उड़ाते हो ।

जिस दिन उनका यह सपना टूटेगा
तेरा अपना भी घर टूटेगा
अपने ही जलायेंगे अपनों को
क्योंकि तब तक वे भस्मासुर बन जायेंगे ।

अब हम कबूतर नहीं उड़ायेंगे
बाज उड़ायेंगे , बाज
परवाज में जिसके होगी बिजलियों की कड़क ,
प्रतिरोध में ताकत चट्टानों की
आतंक के साये में
अमन की बात नहीं दोहराएंगे ।

हम प्रतिशोध नहीं लेंगे
प्रतिकार करेंगे, प्रतिकार
वज्र से भी कठोर आघात करेंगे,
अब प्रतिघात करेंगे

धरती की क्या करते हो बात ,
समंदर पर भी दौड़ लगायेंगे ।
हम ढूंढेंगे "इन्द्रधनुष के तीर"
अपने तरकश में उसे सजायेंगे ।

बहुत कर लिया इलाज
तुम्हारे दिए जख्मों का
अब मरहम नहीं लगायेंगे
अपने घावों को नहीं सहलायेंगे
सूखते घावों को खुरच-खुरच कर हरा बनायेंगे ।

सूखने नहीं देंगे अपने आंसुओ को
उसे ज्वालामुखी का जल ,
किनारा तोड़ने को आतुर
उफनती नदी की धार बनायेंगे ।

खून से लथ-पथ लोगों की तस्वीर
अपने घर में सजायेंगे।
उनकी चीखों को अपने कानों में बसायेंगे
जितने आंसू हमने रोये
जितने अपने हमने खोये
उनको रखेंगे हर पल याद
एक-एक पल - एक-एक क्षण
मोमबत्ती नहीं जलाएंगे ।

अब नहीं होगी गाँधी की बात ,
ना ही नेहरु की सौगात ,
पटरी पर लौटे जीवन,
अपनी बेबसी को
नहीं देंगे साहस का नाम ।
अपनी विवशता को बहादुरी का जामा नहीं पहनायेंगे ,
नहीं कहेंगे इसको जीने का अंदाज ,
अपनी गौरव गाथा नहीं बनायेंगे ।

बेशक आगाज किया है तुमने,
अंजाम तक इसे हम ले जायेंगे,
बहुत हो गया सब्र का इम्तहान ,
अब तो तोड़ डालेंगे ये बाँध ,
तुमको भी बहा ले जायेंगे ।

अब तो हमारा पथ होगा अग्नि-पथ
हम उसके पथिक बन जायेंगे
अब हिंसा को अहिंसा का हथियार बनायेंगे
अब हम प्रहार करेंगे, प्रहार ।

ध्वंस करेंगे ध्वंस
और फिर करेंगे.
सृजन का इन्तजार .........।

अब कभी आतंक के साए में
अमन की बात नहीं दोहराएंगे ।

1 comment:

  1. rajiv ji aapki lambi kavita ko pichle dino kai baar padha... lekin iss bar ek alag vatavarn mein padha jab padosi desh ke saath baat karni ki pahal ka jawab hume kashmir mein dhamakon aur pune ko dehla kar mila... hur baar humare saath aisa hi hota hai... is paripeskshya me aapki kavita bahut samicheen aur sarthak hai... ab samay aa gaya hisab chukane ka... humari himmat keval phir se khade hone ki nahi balki humari himmat pratigaht karne mein bhi hai aur yeh pehal hume pehle karne ki jarurat hai...

    sarkar ki apni majburi aur apna swarth hota hai.. iss se ab desh chalne wala nahi hai... duniya humare baare baare mein kya kehti hai... iss se nikal kar duniya ko hume swaym batana hoga ki hum apni sarhadon aur apne logo ki raksh ke liye kissi had tak jaa sakte hain... ek achhi rachna ke liye badhai!

    kavita ke gathan mein kai loch rehne ke wabjood kavita achhi bani hai!

    ReplyDelete