मैं , परबतिया,
परायेपन की सोच से पैदा हुई ,
परायेपन के सच के साथ,
उसी माहौल में पली बढ़ी ,
परायापन हावी रहा ताउम्र ,
हमपर , हमारे परिवार पर।
सबको मिला दूध, मुझे दूध का पानी,
यह एक सच है, कड़वा सच !
आखिर बेटी जो ठहरी , मैं
बेटी तो 'परायाधन ' होती है।
परायेपन के अपनेपन में कब मायका छूटा ,
माँ-बापू के साथ जीने का भरम टूटा ,
कब अपने गुड्डे -गुड़िया को छोड़
बिखरे सपनो के संग ससुराल गई
पता ही नहीं चला!
परायेपन की कोख से ही फिर बचपन फूटा ,
मेरे भीतर बहुत कुछ बिखरा, बहुत कुछ टूटा ,
एक बार फिर मेरा बचपन,
मेरी गोद में ठहर गया ।
उसकी आँखों में ढूँढती रही
अपने बिखरे सपने ,अपना बचपन ,
अपना किलकता अतीत ,
पर वहां खालीपन के सिवाय कुछ नहीं था ,
कुछ भी तो नहीं ।
बस एक झोपड़ी और हम तीन ,
अपनों के बीच परायों कि तरह जीते हुए ।
लेकिन मैंने सोच लिया है
उसके बचपन को दूंगी जवानी ,
उसके सपनो को दूंगी उड़ान,
अब मैं परायेपन के अहसास तले नहीं जीऊँगी।
अपने मरद को समझाउंगी
बर्तन माजूंगी, पोछा लगाउंगी
मगर अपनी बेटी को ' खूब पढ़ाउंगी' ,
उसे खड़ा कराऊंगी अपने पैरों पर
ताकि उसकी हो अपनी अलग पहचान ।
परायेपन के पालने में नहीं झुलाऊँगी उसे ,
पालूंगी अपनेपन के साथ ,
अपने-पन के लिए ।
sangharsh aur jeet ke beech ka achha tana bana buna hai aapne... parvatiya ka jajba yadi auro tak pahunch jaaye to parvatiya... parvati ban jaaye....
ReplyDeleteपरायेपन के पालने में नहीं झुलाऊँगी उसे ,
ReplyDeleteपालूंगी अपनेपन के साथ ,
अपने-पन के लिए ।....... naari ki pragatisheel soch aur halat se ladne ka hausla naari shakti ko ubharne mein safal......