Monday, March 22, 2010

पुनर्मिलन

जब - जब मैं टी वी के सामने बैठता हूँ , पापा
और घडी रात के ८.४० बजाती है
और समय होता है समाचार का
आपके साथ मैं बैठता हूँ
आप देखते हैं समाचार, मैं भी देखता हूँ ,
मैं देखता भी हूँ, सोचता भी हूँ
समाचार खत्म होते ही माँ आकर आगे बैठ जाती है
"सास-बहू" सीरिअल शुरू होने वाला है
आप खा भी रहे है और देख भी रहे हैं,
संतोष आँगन में खाट डाले पड़ा है,
पड़े - पड़े देख रहा है
पुष्पा रसोई बना रही है
"आप भी खा लीजिये ना ", वह वहीं से बोलती है।
"अभी ठहरो, थोड़ी देर बाद खा लूंगा , इतनी जल्दी भी क्या है ?"
"कहीं चले मत जाइयेगा, आपकी तो आदत ही ऐसी है"
राजा बेटा, वैसे मत करो
देखो, नहीं मानोगे तो मार खाओगे
तभी पिताजी उसे गोद में उठा लेते हैं -
"प्यार तो करोगे नहीं, सिर्फ मारने की बात करोगे "
"आप समझते क्यों नहीं पापा , इसकी आदत ख़राब हो जायेगी,
मैं जब भी उसे डांटता हूँ , आप उसे पुचकारने लगते हैं "
पुष्पा भी मुझ पर ही गुस्सा हो रही है
और मैं पुनः टी वी में खो जाता हूँ
अब अंगरेजी का समाचार आ रहा है
"हेडलाइंस अगेन " के साथ समाचार खत्म होता है,
तब अचानक याद आता है कि आप लोग मुजफ्फरपुर में हैं
और मैं " पुरुलिया " में ।
मिलकर बैठने की ख़ुशी और बिछड़ने का गम साथ लिए ।


5 comments:

  1. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. " तब अचानक याद आता है कि आप लोग मुजफ्फरपुर में हैं
    और मैं " पुरुलिया " में ।
    मिलकर बैठने की ख़ुशी और बिछड़ने का गम साथ लिए ।"

    kavita antim pankti tak samajh nahi aayee thee lekin ... neeche ki teen panktiya dil ko bedh gai... visthapan ka dard liye iss kavita ko wahi samajh sakta hai jo apne parijano se door rehta hai... bahut sunder !

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  3. मिलकर बैठने की ख़ुशी और बिछड़ने का गम साथ लिए ...... door hote rishto ke liye chhatpatahat ko saral shabdon mein vyakt karti bahut hi bhavpurn abhivyakti......

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  4. This comment has been removed by the author.

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