जब कभी भी किसी नई जगह जाओगे ,
स्वयं को अपनों से दूर
नए लोगों के बीच पाओगे ,
और पाओगे एक घुटन-भरा अजनबीपन,
अपने चारो ओर, सन्नाटे की तरह पसरा हुआ ,
कौतूहल जगाता हुआ ।
समय और स्थान ,
सब कुछ नया लगेगा , अजीब लगेगा ,
धरती और आसमान भी लगेगा बदला-बदला सा ।
बहुत बैचन करेगा ये नयापन,
ये बदलाव ,
कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा ,
कुछ भी तो नहीं।
पर अगले ही पल से अजनबीपन का दायरा घटने लगेगा ,
धीरे धीरे अपने आप में सिमटने लगेगा ।
लोगों का कौतुहल , परायापन
अपनेपन में बदलने लगेगा ।
ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है,
तेरे साथ - मेरे साथ,सबके साथ ।
अपना समझने का " पन" ही तुम्हे
औरों से जोड़ेगा
लयबद्ध विकास के पथ पर मोड़ेगा
"अजनबीपन" से ही अपनेपन की शुरुआत होगी,
घबराना मत,
इसे हँसकर गले लगाना।
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