Monday, February 21, 2011

आने दो वसंत

आज
हर तरफ सूखा है,
भीतर-बाहर
सब कुछ रुखा-रुखा है
बादल भी हो रहे हैं सफ़ेद.

इंसानों की कौन कहे
बिगड़ी हुई है
प्रकृति की भी चाल
पेड़ों ने भी नहीं ओढ़ी है
अभीतक
हरे पत्तों की शाल,
उतरा हुआ है
खेतों का भी रंग,
कुछ ठीक सा नहीं लगता,
समय का रंग-ढंग.

एकबार फिर
आने दो वसंत
चारो ओर
चहकने दो चिड़ियों को
डाली-डाली,
नदियों को
कल-कल बह जाने दो,
झरनों को
झर-झर झर जाने दो,
खेतों में खिल जाने दो
सरसों के पीले फूल.

चुन लेने दो
तितलियों को
मनचाहे फूल,
भवरों को
झूम लेने दो
पीकर मकरंद,
बिछ जाने दो
हरियाली की चादर
चारो ओर
बह लेने दो
एकबार फिर
मंद-मंद
सिहरन भरा समीर,
घुल जाने
दो हवाओं में भंग,
छा जाने दो
चतुर्दिक उमंग.

शेमल के फूलों से
चुरा कर रंग लाल
बना लो गुलाल,
खेलो होली
एक-दूजे के संग.
रंग दो
मन का कोना-कोना,
अंग-अंग.

दो रिश्तों को
नया जीवन,
वसंत को आने दो
बार-बार,बार-बार,
लगातार,
सबकुछ
वासंती हो जाने दो.

23 comments:

  1. वसंत पर इस से सार्थक कविता नहीं पढ़ी है इन दिनों.. आपकी रचनात्मक अभिव्यक्ति नई ऊंचाई को छू रही है..

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  2. अभिव्यक्ति को
    सुन्दर शब्दों के साथ मिले
    तो बहुत अच्छी रचना हो उठती है ...

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  3. बहुत ही उम्दा अभ्व्यक्ति.
    सलाम

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  4. दो रिश्तों को
    नया जीवन,
    वसंत को आने दो
    बार-बार,बार-बार,
    लगातार,
    सबकुछ
    वासंती हो जाने दो.

    बहुत ही सार्थक और उत्कृष्ट रचना..

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  5. आया बसंत, आया बसंत.

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  6. बहुत ही सुन्दर रचना! आज का वातावरण मे बदलाव और बसन्त की सच्चाई बखुबी उतरी है इस रचना मे! बधाई हो!

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  7. दो रिश्तों को
    नया जीवन,
    वसंत को आने दो
    बार-बार,बार-बार,
    लगातार,
    सबकुछ
    वासंती हो जाने दो.

    क्या बसंती छटा बिखेरी है इस सुंदर कविता के माध्यम से.

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  8. राजीव जी! आपकी दो पोस्टॉं के बीच का अंतराल यह इंगित करता है कि आप कविता को जीते हैं और तब जाकर कविता आकार लेती है!! वसंत को सही अर्थों में परिभाषित करती रचना!!

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  9. प्रकृति की भी बिगड़ी है चाल ,
    खिल नहीं पा रहे इसलिए मन भी ...
    वसंत अभी ठिठका है किनारे ही ...
    मगर घोल कर रंग आने दो वसंत को ...
    वसंत को आमंत्रित करती अच्छी कविता !

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  10. vasant aa chuka hai, bas uska asar dekhna baaki hai...sachchai me bhi aur aapke post me bhi..:)

    kya kahne hain, ek shandaar nimantran prakriti ko..:)

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  11. basant par saarthak badhiya kavita.

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  12. रिश्तों की बासंती बहार,
    हर ओर प्रकृति का प्यार।

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  13. mini seth to me

    bahut khoob likha hai apne..
    sabke kay jeevan mai sada basant ka agman
    pyar bhara ho

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  14. श्री राजीव जी,

    कविता के भाव अच्छे हैं लेकिन विस्तार अधिक होने के कारण विरल हैं।

    शुभकामनाएं,

    हरीश

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  15. Ranjana to me
    वाह ...वाह...वाह...
    लाजवाब....
    क्या लिखा है आपने...मुग्ध कर दिया....
    बहुत बहुत सुन्दर...
    सचमुच नवपल्लव आने में विलम्ब कर रहे हैं...चारों ओर सब सूखा सूखा लग रहा है...न जग में उमंग न मन में ....

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  16. Tarkeshwar Giri to me
    बहुत ही सुन्दर रचना , साथ में लिंक भी भेज दिया करे.
    बहुत ही सुन्दर रचना , साथ में लिंक भी भेज दिया करे.

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  17. vandana gupta
    to me
    वाह मन मोह लिया.........सब कुछ वासंतिक हो गया..........सुन्दर प्रस्तुति.

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  18. Dr. Girish Kumar Verma to me

    vah! vah! ati sundar racana hai badhaee.
    Dr. Danda Lakahnavi

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  19. दो रिश्तों को
    नया जीवन,
    वसंत को आने दो
    बार-बार,बार-बार,
    लगातार,
    सबकुछ
    वासंती हो जाने दो

    वासंती रंगों में रंगी हुई चिंतनपरक सुन्दर रचना .

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  20. बहुत ही सुन्दर रचना!
    बधाई हो!

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  21. Sambandho ke darpan me hi aadmi ki haqiqat dikhti hai...

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