हम अमन का पाठ पढ़ाते हैं
इंसानीयत को अपना ईमान बनाते हैं ,
हम इंसान बनाते हैं , इंसान
लोगों को बुद्ध और ईसा की बातें सिखाते हैं
राम, रहीम की राह दिखाते हैं ।
हैवान नहीं बनाते।
कैसे हो तुम लोग
अपनों को ही बरगलाते हो
जन्नत का ख्वाब दिखाकर
"मानव बम " बनाते हो
इंसान और इंसानियत के चीथड़े उड़ाते हो ।
जिस दिन उनका यह सपना टूटेगा
तेरा अपना भी घर टूटेगा
अपने ही जलायेंगे अपनों को
क्योंकि तब तक वे भस्मासुर बन जायेंगे ।
अब हम कबूतर नहीं उड़ायेंगे
बाज उड़ायेंगे , बाज
परवाज में जिसके होगी बिजलियों की कड़क ,
प्रतिरोध में ताकत चट्टानों की
आतंक के साये में
अमन की बात नहीं दोहराएंगे ।
हम प्रतिशोध नहीं लेंगे
प्रतिकार करेंगे, प्रतिकार
वज्र से भी कठोर आघात करेंगे,
अब प्रतिघात करेंगे
धरती की क्या करते हो बात ,
समंदर पर भी दौड़ लगायेंगे ।
हम ढूंढेंगे "इन्द्रधनुष के तीर"
अपने तरकश में उसे सजायेंगे ।
बहुत कर लिया इलाज
तुम्हारे दिए जख्मों का
अब मरहम नहीं लगायेंगे
अपने घावों को नहीं सहलायेंगे
सूखते घावों को खुरच-खुरच कर हरा बनायेंगे ।
सूखने नहीं देंगे अपने आंसुओ को
उसे ज्वालामुखी का जल ,
किनारा तोड़ने को आतुर
उफनती नदी की धार बनायेंगे ।
खून से लथ-पथ लोगों की तस्वीर
अपने घर में सजायेंगे।
उनकी चीखों को अपने कानों में बसायेंगे
जितने आंसू हमने रोये
जितने अपने हमने खोये
उनको रखेंगे हर पल याद
एक-एक पल - एक-एक क्षण
मोमबत्ती नहीं जलाएंगे ।
अब नहीं होगी गाँधी की बात ,
ना ही नेहरु की सौगात ,
पटरी पर लौटे जीवन,
अपनी बेबसी को
नहीं देंगे साहस का नाम ।
अपनी विवशता को बहादुरी का जामा नहीं पहनायेंगे ,
नहीं कहेंगे इसको जीने का अंदाज ,
अपनी गौरव गाथा नहीं बनायेंगे ।
बेशक आगाज किया है तुमने,
अंजाम तक इसे हम ले जायेंगे,
बहुत हो गया सब्र का इम्तहान ,
अब तो तोड़ डालेंगे ये बाँध ,
तुमको भी बहा ले जायेंगे ।
अब तो हमारा पथ होगा अग्नि-पथ
हम उसके पथिक बन जायेंगे
अब हिंसा को अहिंसा का हथियार बनायेंगे
अब हम प्रहार करेंगे, प्रहार ।
ध्वंस करेंगे ध्वंस
और फिर करेंगे.
सृजन का इन्तजार .........।
अब कभी आतंक के साए में
अमन की बात नहीं दोहराएंगे ।
Dil Ka Aashiyana Where Every Relation has Its Relavance,Every Individual has his Place.Humanity Reigns Supreme.
Wednesday, January 27, 2010
Thursday, January 7, 2010
अब रिश्तों की बात करें हम
चल यादों की डोर पकड़कर
अब अतीत की ओर चलें हम
फिर ढूंढें कुछ अच्छे मोती
जिससे अपना कल बन जाये ।
झर - झर झरते झरने होंगे
कल - कल करती नदियाँ होंगी
आगे खड़ा समंदर होगा
मिलन बड़ा ही सुन्दर होगा ।
खेतों में हरियाली होगी
लोगों में खुशहाली होगी
"दर्शन " चाहे अलग-अलग हो
'चूल्हा ' सबका एक रहेगा ।
आओ मिलकर दीप जलाएं
रिश्तों में उजियारा लायें
दुःख की बात करें न कोई
रिश्ते हों, सुख ही सुख हो ।
अब अतीत की ओर चलें हम
फिर ढूंढें कुछ अच्छे मोती
जिससे अपना कल बन जाये ।
झर - झर झरते झरने होंगे
कल - कल करती नदियाँ होंगी
आगे खड़ा समंदर होगा
मिलन बड़ा ही सुन्दर होगा ।
खेतों में हरियाली होगी
लोगों में खुशहाली होगी
"दर्शन " चाहे अलग-अलग हो
'चूल्हा ' सबका एक रहेगा ।
आओ मिलकर दीप जलाएं
रिश्तों में उजियारा लायें
दुःख की बात करें न कोई
रिश्ते हों, सुख ही सुख हो ।
न पाने का गम,पा लेने की ख़ुशी
पा लिया है तुम्हें ,
पर खो दिया है तुम्हें न पाने का दर्द।
हरपल मन को तरसाती, तडपाती,
आशा और निराशा के बीच झुलाती ,
दर्द के पलों में बसी ,
तेरे आने की बात मन को गुदगुदाती ,
पर तुम्हारे न आने की आशंका ,
अपनी कमजोरी का एहसास
विवश कर जाती ,
अजीब सी तड़प छोड़ जाती।
कितने सुनहरे सपने सजाये थे हमने ,
तेरे आते ही सब टूट गए,
ख़त्म हो गयी बेकरारी ,
ख़त्म हो गया इन्तजार ।
लेकिन हम निराश नहीं हैं ,
तुम्हारे रोने और चुप हो जाने में ,
तुम्हारे खिलखिलाने में
अपने दर्द का पर्याय ढूंढ रहे है ,
ढूंढ रहे हैं उनमें सिमटी सुख की सुगंध।
पर खो दिया है तुम्हें न पाने का दर्द।
हरपल मन को तरसाती, तडपाती,
आशा और निराशा के बीच झुलाती ,
दर्द के पलों में बसी ,
तेरे आने की बात मन को गुदगुदाती ,
पर तुम्हारे न आने की आशंका ,
अपनी कमजोरी का एहसास
विवश कर जाती ,
अजीब सी तड़प छोड़ जाती।
कितने सुनहरे सपने सजाये थे हमने ,
तेरे आते ही सब टूट गए,
ख़त्म हो गयी बेकरारी ,
ख़त्म हो गया इन्तजार ।
लेकिन हम निराश नहीं हैं ,
तुम्हारे रोने और चुप हो जाने में ,
तुम्हारे खिलखिलाने में
अपने दर्द का पर्याय ढूंढ रहे है ,
ढूंढ रहे हैं उनमें सिमटी सुख की सुगंध।
अपना सच-आज का सच
कभी-कभी ऐसा लगता है
अपनों से कटने लगा हूँ ,
राम-रावण में बटने लगा हूँ मैं।
कल तक तो मैं औरों के लिए जीना चाहता था,
आज तो बस खुद में सिमटने लगा हूँ मैं।
ये कैसा बदलाव है मुझमे,
बरसात में भीगने से डरने लगा हूँ मैं।
कुछ साल पहले तक तो अपनों के बिना
एक पल जीना भी दुशवार लगता था ,
अब तो अपने परिवार तक से कटने लगा हूँ मैं।
क्या हो रहा है मुझे ,क्यों हो रहा है ,
धीरे-धीरे ये सब समझने लगा हूँ मैं।
कुछ दिन पहले तक सबको अपना समझता था,
आज तो खुद को ही "अजनबी" समझने लगा हूँ मैं।
अपनों से कटने लगा हूँ ,
राम-रावण में बटने लगा हूँ मैं।
कल तक तो मैं औरों के लिए जीना चाहता था,
आज तो बस खुद में सिमटने लगा हूँ मैं।
ये कैसा बदलाव है मुझमे,
बरसात में भीगने से डरने लगा हूँ मैं।
कुछ साल पहले तक तो अपनों के बिना
एक पल जीना भी दुशवार लगता था ,
अब तो अपने परिवार तक से कटने लगा हूँ मैं।
क्या हो रहा है मुझे ,क्यों हो रहा है ,
धीरे-धीरे ये सब समझने लगा हूँ मैं।
कुछ दिन पहले तक सबको अपना समझता था,
आज तो खुद को ही "अजनबी" समझने लगा हूँ मैं।
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