आज
सत्तर से ऊपर के हैं बाबूजी,
पहले जैसा नहीं रहा है शरीर,
उन्हें होने लगी है जरूरत
सहारे की
चाहे लाठी की हो
या हमारे कन्धों की.
पर,
आज भी जब होती है
किसी अपने से मिलने जाने की बात
छोटे बच्चे की तरह
मचल उठते हैं बाबूजी,
व्यग्र हो उठता है उनका मन
क्योंकि रिश्तों में ही जिए,
रिश्तों के लिए ही जिए हैं
सब दिन बाबूजी.
लाठी के सहारे ही सही
आज भी रिश्तों के करीब तक
चलकर जाना चाहते है बाबूजी.
चढ़ लेना चाहते हैं ऊँची सीढियाँ
हमारे कन्धों का सहारा ले
बिना उफ़ किये ये सोचकर
"कोई अपना बैठा है
उन ऊँचाइयों पर".
आज भी याद आता है
बचपन का वो दिन
जब बाबूजी की ऊँगली पकड़,
उनके कंधे पर चढ़
जाया करते थे रिश्तेदारी में
पूरे उत्साह से,
हो जाते थे अभिभूत
उनके अपनेपन से ,
भर आती थी आँखें
पाकर ढेर सारा स्नेह,
ढेर सारा प्यार.
आज
वे हमारी उंगली पकड़,
कंधे का सहारा ले
जब थाम लेना चाहते हैं
रिश्तों की डोर,
तय कर लेना चाहते है
जीवन का सफ़र
तो समझ पा रहे है हम
जीवन में रिश्तों का महत्व,
जीवन पर उसका असर,
मंझधार में
पतवार के संग
कश्ती का सफ़र.
भावुक कर गई आपकी यह रचना...
ReplyDeleteभावनाओं के गोते लगवाए आपनें
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति!!
बहुत सुंदर , ये रिश्तों का सफर क्या हम आज यों ही देख पा रहे हैं. वे बाबूजी जिन्होंने हमें अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया और कंधे पर बिठा कर साथ ले जाना दिखाया. हम ऐसा कर पा रहे हैं. हम अपने ही खून के रिश्तों में कटुता का जहर घोल रहे हैं . अब बाबूजी नहीं हमें अपने बच्चे नजर आते हैं यह भूल कर कि वे भी अपने ही बच्चों को ही तो दुलराते थे और उनके बच्चे हम ही हैं न. जिनके पास दुलराने तो क्या उनके सुख और दुःख पूछने का वक्त नहीं है.
ReplyDeleteयही होती है चाह जिससे हर किसी को गुजरना है एक दिन्………रिश्तो का असर मन पर ही ज्यादा करता है।
ReplyDeleteलाठी के सहारे ही सही
ReplyDeleteआज भी रिश्तों के करीब तक
चलकर जाना चाहते है बाबूजी.
चढ़ लेना चाहते हैं ऊँची सीढियाँ
हमारे कन्धों का सहारा ले
बिना उफ़ किये ये सोचकर
"कोई अपना बैठा है
उन ऊँचाइयों पर".
yahi vishwaas ragon mein daud jijivisha banta hai
अपनों पर विश्वास की डोर से आगे बढते रिश्तो को बहुत खूबी से व्यक्त किया है आपने
ReplyDeleteबहुत खूब...
बहुत ही भावपूर्ण रचना...बहुत कुछ याद दिला गई...
ReplyDeleteभावुक कर गई आपकी यह मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति|धन्यवाद|
ReplyDeletebahut hi marmik parastuti.....thanks.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteएक संवेदनशील कवि की संवेदनशील रचना...
ReplyDeletejeevan darpan...bahut sundar rachna...
ReplyDeleteकाश हम पुरानी बातें याद कर वर्तमान के साथ न्याय कर पायें।
ReplyDeleteएक हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteअत्यंत कोमल भाव और हृदय को छू लेने वाली रचना
ReplyDeleteदिल को छू गयी आपकी रचना ... सच में रिश्तों का बहुत महत्व है जीवन में और इसे समझने की ज़रूरत है ...
ReplyDeleteदिल को छूने वाली एक हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteसंवेदनशील,मर्मस्पर्शी रचना. मनोभावों कि बेहतरीन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteआभार
भावमय करते शब्द ...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
"जीवन में रिश्तों का महत्व,
ReplyDeleteजीवन पर उसका असर,
मंझधार में
पतवार के संग
कश्ती का सफ़र. "
बुजुर्गों का इतना भी संस्कार हम में आ जाए
रिश्तों की कद्र,उनका महत्त्व उनकी मर्यादा...
और शायद हम यही भूलते जा रहे हैं !!
तो समझ पा रहे है हम
ReplyDeleteजीवन में रिश्तों का महत्व,
जीवन पर उसका असर,
मंझधार में
पतवार के संग
कश्ती का सफ़र.
रिश्तों की अहमियत को ख़ूबसूरती से ब्यान किया है आपने.
बहुत ही खूब.
दिल की गहराई से लिखी बहुत ही भावनात्मक प्रस्तुति |
ReplyDeleteआज
ReplyDeleteवे हमारी उंगली पकड़,
कंधे का सहारा ले
जब थाम लेना चाहते हैं
रिश्तों की डोर,
तय कर लेना चाहते है
जीवन का सफ़र
तो समझ पा रहे है हम
जीवन में रिश्तों का महत्व,
जीवन पर उसका असर,
मंझधार में
पतवार के संग
कश्ती का सफ़र.
..
kam se kam aap samajh to paa rahe hain...adhikansh to in samvednaon tak pahunch hi nahi paate ....sundar chitran !
मृदुला हर्षवर्धन
ReplyDelete"bahut hi marmik abhivyakti hai Rajiv ji"