जब मेरे बेटे ने कहा
"पापा,एक बात कहना चाहता हूँ,
मैं अपने पसंद की लड़की से
शादी करना चाहता हूँ"-
एकबारगी तो लगा
जैसे आ गया हो भूचाल,
खिसक गई हो
पावों तले से जमीन,.
पत्नी के चेहरे पर भी
उड़ रही थी हवाई,
एक बार को तो मैं भी
आ गया था सकते में ,
विचारों की श्रंखला भी
हो गई थी छिन्न-भिन्न .
लेकिन जैसे-तैसे
मैं वर्तमान से बाहर आया,
अतीत का दरवाजा खटखटाया
तो यादों ने झट से खोल दिए द्वार.
दिखलाया 25 साल पहले का मंजर,
जब मेरी बातें बनी थी खंजर ,
मां के पैरों तले से
ऐसे ही खिसकी थी जमीन.
देकर प्रथाओं का वास्ता,
दिखाकर ज़माने का डर ,
खींचकर भविष्य की भयावह तस्वीर
मुझे डराया था,
सारा उंच-नीच समझाया था.
खा बैठी थी कसम
जीते जी ऐसा न होने देने की.
आज
एकबार फिर
मेरा अतीत
मेरे सामने खड़ा है.
एकबार फिर एक मां
पडी है उलझन में:
समाज की उंगली पकड़कर चले
या फिर थाम ले समय का हाथ
जो कहीं-न-कहीं बंधें हैं
कई-कई प्रथाओं से,
या फिर बनने दे
नई प्रथाएं....
सुन्दर रचना .....सुलगता प्रश्न
ReplyDeleteकुछ तो निर्णय लेना ही होगा .....बच्चों के पक्ष में फैसला हो तो अच्छा है क्योंकि हम जिस परम्परा से दो चार हो चुके हैं , उसका सही समाधान भी हमें ही तो करना है |
वक्त के साथ प्रथायें बदलती ही हैं और उन्हे बदलना भी चाहिये नही तो समाज से अलग थलग पड जाता है इंसान्।
ReplyDeleteआगे बढ़ती परम्पराएं, खुद को दुहराता इतिहास.
ReplyDeleteमुझे विश्वास है
ReplyDeleteतुम ऐसा कुछ नहीं होने दोगे
जिससे वही अतीत एक बार फिर
आकर खड़ा हो
तुम्हारे बेटे के सामने
जिसने घोंपा था खंजर
तुम्हारे सीने में
डराया था तुम्हे
अपनी खुशी से जीने में
समझाई थी तुम्हे उंच -नीच
खीच दी थी दरारे
अपनो के बीच
तुम सुलझाओगे
इस माँ की उलझन
समझोगे उसकी व्यथाएं और
शुरू करोगे "नई प्रथाएं"
बहुत सुन्दर कविता.. मन के द्वन्द और पीढ़ियों के संक्रमण काल की बेहतरीन कविता है यह.. बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteपीढ़ियों का यह द्वंद्व हमेशा चलता रहता है ...
ReplyDeleteराह भी निकलती है , नयी प्रथाएं भी बनती हैं ...कुछ उथल पुथल के बाद !
@ vani geet ji se sehmat hoon
ReplyDeleteपीढ़ियों का यह द्वंद्व हमेशा चलता रहता है ...
दो पीढ़ियों के बीच सोच और विचारों का अंतर हमेशा चलता रहा है..गनीमत है कि उसने शादी से पहले अपने माता पिता को बताया तो सही, वरना आजकल बिना बताए शादी करने के बाद माता पिता से अपनी पत्नी का परिचय कराना भी नयी बात नहीं रही..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeletemini seth to me
ReplyDeletebahut sahi chitran kiya hai apne......jaroot hai sahi sooch ki...age
badhne ki
वक्त के साथ कदमताल करिये...बदलने दिजिये प्रथायें..आप भी तो खोजते ही...उसी ने खोज ली...कम से कम पसंद तो उसकी है.
ReplyDeleteअच्छी रचना.
नयी प्रथा बने, बिना व्यथा बने।
ReplyDeleteअतीत की यही व्यथा है
ReplyDeleteकी ये लौट कर सामने आता जरुर है
बहुत सुंदर कविता
समाज की उंगली पकड़कर चले
ReplyDeleteया फिर थाम ले समय का हाथ
जो कहीं-न-कहीं बंधें हैं
कई-कई प्रथाओं से,
या फिर बनने दे
नई प्रथाएं....
सुंदर सामाजिक सरोकार. यह द्विविधा सबको किसी ना किसी समय मुश्किल में जरूर डालती है.
बनने दे नई प्रथाएं.... :-) badi sunder rachna!
ReplyDeleteबहुत बहुत प्रभावशाली और सटीक ढंग से आपने विषय को रखा है आपनी इस कविता में...
ReplyDeleteहर अभिभावक को लगता है उसका बच्चा नादाँ है,गलत कर रहा है और हर संतान सोचती है कि उसके अभिभावक उसे समझ नहीं पा रहे,समय से बहुत पीछे हैं...
यह सिलसिला शायद ही कभी कभी टूटता है...
बहुत सुन्दर मनोविश्लेषण किया है आपने...बहुत ही सुन्दर रचना....
ऐसे में फैसले बहुत सोच समझ कर लेने होते हैं.
ReplyDeleteDr.Danda Lakhnavi to me
ReplyDeleteyathart kaa sahee chitran kiyaa hai
archana thakur to me
ReplyDeletebahut bahut achhi lagi
Rekha Srivastava to me
ReplyDeleteराजीव भाई ,
(कमेन्ट बॉक्स नहीं खुल रहा है मेरा कमेन्ट अगर डाल दें तो बहुत अच्छा होगा.)
'इन प्रथाओं को लड़ कर
हम जीते रहे,
कई बार रख कर पत्थर
हम वक्त के साथ
मन मार कर चलाते रहे.
अब उस मजबूरी से
इस पीढ़ी को
मुक्त कर दें.
उन्हें जीने दें
अपनी खुशियों के साथ.
जो हमने खोया
उन्हें पाने दें.'
प्रथाएं धेरे धीरे बदलती हैं और फिर वे समान्य मान ली जाती हैं. हम ने बचपन में साईकिल भी मांगी तो बड़े मुश्किल से मिली ,लेकिन आज बच्चों को बाइक और कार खरीद कर दे रहे हैं. फिर और बातों में पीछे क्यों?
समय के साथ बदलना चाहिए और समाज बदल भी रहा है तो क्यूं न हम भी बदलें...
ReplyDeleteबन जाने दो नई प्रथा ........कम से कम आने वाले वक़्त में उसकी यादे उसे आ आ कर परेशान नहीं करेगी
ReplyDeleteआपकी वर्तमान कविता तो पीढ़ियों के बीच 'संस्कार के संक्रमण' की कविता है.. सतह से तो मामूली दिख रही है लेकिन यदि कविता के अंतर्वस्तु में हम जाएँ तो कविता में जो द्वन्द उपज रहा है वह दो पीढ़ियों के समय, काल, परिवेश, संस्कृति, मान्यताओं और वैल्यू सिस्टम को परिभाषित कर रही है.. रेखांकित कर रही है.
ReplyDeleteMark Rai to me
ReplyDeletevery nice...........
artijha jha to me
ReplyDelete"....bahut achhi lagi apki kabita,ya kahani padhke....namaste".
Akshay Singh to me
ReplyDelete"Kavita to achhi hai par chhupe-rustam ye to bata,
Kaun Thi wo?
बहुत सुन्दर कविता..
ReplyDeletenayee prathaye bana kar hi purani prathayon ko hataya ja sakta hai...jo takleef aapne sahi vo aapke bete ko prathaon ke nam par nahi milani chahiye....intajar par aapka comment yad aa gaya aaj....
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