जब भी तुम
होती थी मेरे पास,
दरवाजे के बाहर खड़ा रहकर
समय करता था इंतजार
तुम्हारे बाहर आने का.
तुम्हारे बाहर आते ही
चला जाता था वह
मुस्कुराता हुआ
तुम्हारे साथ.
मैं करता रहता था
बेसब्री से इन्तजार
तेरे लौट आने का,
समय के ठहर जाने का.
जो तुम होती थी साथ
समय समा जाता था तुझमें.
घंटा गुजर जाता था
पल बनकर ,
बस तुम-ही-तुम होती थी
आस-पास,
कोई और नहीं होता था.
आज
मेरे पास नहीं हो तुम
साथ हैं बस तुम्हारी यादें
जिन्हें बांहों में भरकर
छू लेता हूँ तुम्हें,
कर लेता हूँ
तुमसे दो-चार बातें.
आज भी
समझ से परे है
क्यों पाकर तेरा साथ
सदियाँ बीतती रही
पल बनकर,
तुम्हारे न होने पर
समय पाता रहा
अनंत विस्तार.
क्या यही था
मिलन और जुदाई का खेल
जो समय खेलता रहा हमारे साथ,
और हम खेलते रहे
समय के साथ
सालों-साल.
बहुत सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteदिल को छु गयी पन्तिया
आज भी
समझ से परे है
क्यों पाकर तेरा साथ
सदियाँ बीतती रही
पल बनकर,
तुम्हारे न होने पर
समय पाता रहा
अनंत विस्तार.
bahut hi bhavpoorna prastuti..........aansu aa gae aankho me.......thanks.
ReplyDeleteआज भी
ReplyDeleteसमझ से परे है
क्यों पाकर तेरा साथ
सदियाँ बीतती रही
पल बनकर,
तुम्हारे न होने पर
समय पाता रहा
अनंत विस्तार.
कुछ बातें समझ से परे ही होती हैं……………प्रेम को पूर्णता से प्रस्तुत किया है और समय को भी इंतज़ार करवा दिया ये होता है प्रेम।
बेहद खूबसूरत कविता...
ReplyDeleteआज भी
ReplyDeleteसमझ से परे है
क्यों पाकर तेरा साथ
सदियाँ बीतती रही
पल बनकर,
तुम्हारे न होने पर
समय पाता रहा
अनंत विस्तार.
क्या यही था
मिलन और जुदाई का खेल
जो समय खेलता रहा हमारे साथ,
और हम खेलते रहे
समय के साथ
सालों-साल.
kahan koi jaan paaya hai ise , yah khel aaj bhi chalta hai kahin n kahin
Nirmal Gupta to me
ReplyDeleteKya baat hai.cograts
वाह!! बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआज भी
ReplyDeleteसमझ से परे है
क्यों पाकर तेरा साथ
सदियाँ बीतती रही
पल बनकर,
तुम्हारे न होने पर
समय पाता रहा
अनंत विस्तार.
क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.
ऐसा ही होता है, जन पलों को हम पलकों में समां कर थाम लेना चाहते हैं वे रुकते नहीं है और कुछ पल ऐसे भी होते हैं जो कटते ही नहीं हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता !
क्या यही था
ReplyDeleteमिलन और जुदाई का खेल
जो समय खेलता रहा हमारे साथ,
और हम खेलते रहे
समय के साथ
सालों-साल.
....सब समय का फेर है..... कब क्या होगा कोई नहीं जानता....
यूरेका कह सकते हैं आप.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना। हम सबको मिलन और बिछोह के बीच में न जाने कितने समन्दर ढूढ़ने होते हैं।
ReplyDeleteक्या यही था
ReplyDeleteमिलन और जुदाई का खेल
जो समय खेलता रहा हमारे साथ,
और हम खेलते रहे
समय के साथ
सालों-साल.
कभी तो जुदाई के बाद ही जान पाते है कि आपका उसके प्रति स्नेह कितना है. इससे तो कभी जुदाई अच्छी सही तारतम्य बैठने के लिए. फिर हो मिलन का मज़ा है वह असीम होगा.
क्या यही था
ReplyDeleteमिलन और जुदाई का खेल
जो समय खेलता रहा हमारे साथ,
और हम खेलते रहे
समय के साथ
सालों-साल.
बहुत खूब कहा है ।
क्या यही था
ReplyDeleteमिलन और जुदाई का खेल
जो समय खेलता रहा हमारे साथ,
और हम खेलते रहे
समय के साथ
सालों-साल
यही तो होता है और शायद होता रहेगा...
बहुत खूब....
उफ़ ..ये कुछ प्यारी ....कुछ न्यारी
ReplyDeleteये यादे ना जीने दे ...
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति भैया
wah re intzaar...bahut pyari si abhivyakti...rajeev jee...!!
ReplyDeleteaapki kavita ek alag unchai ko chhuti hai..
aur har baar lagta hai, main kyun nahi aisa kar pata hoon!
artijha jha to me
ReplyDeleteNo heart is found,
No mind appears,
No remorse is seen
In the watery eyes.
No body knows
Wants to know
Why young generation
Always have to pay
For their freedom,
For their choice.....very touching...mind bloing...specialy..tis lines
कोमल प्रेमपूर्ण भावों को बहुत ही सुन्दरता से अभिव्यक्ति दी है आपने...
ReplyDeleteसत्य है प्रिय का साथ हो तो साल पल बन जाते हैं और दूरी हो तो पल भी साल से लगते हैं...
गहन चिंतन से उपजी सुन्दर प्रस्तुति.बधाई राजीव जी.
ReplyDeleteसमय समय की बात.
ReplyDeleteक्या खूब लिखी है...
ReplyDeleteकई वर्षों बाद जीवन ने हमे भी ऐसा ही उपहार दिया है..आपकी रचना हमारे दशा को पूर्ण रूप से व्यक्त कर गयी,....
बधाई एक अति सुन्दर अभिव्यक्ति पर.....
संजय
http://chaupal-ashu.blogspot.com/