Sunday, May 15, 2011

तुमसे मिलकर....

तुमसे मिलकर जाना
क्या होती है
मिलन की चाह,
विरह की आग.

तुमसे मिलकर जाना
क्यों मीठी लगती है
सूरज की आंच
जब तुम होते हो साथ,
क्यों जलाती है
चाँद की शीतल चाँदनी,
क्यों लग जाती है
सावन में आग
मेरे तन-मन में
जब तुम नहीं होते हो पास..

तुमसे मिलकर जाना
क्यों उठाती है मन में हूक
कोयल की मीठी कूक.
क्यों होता है
पपीहे की आवाज में
इतना दर्द

तुमसे मिलकर जाना
क्यों छा जाती हैं
काली घटाएं
क्यों बरसने लगते हैं मेघ,
क्यों छलक पड़ती हैं आँखें
तेरे आने के बाद,
तेरे जाने के बाद.

तुमसे मिलकर जाना
क्यों नहीं सताता सावन,
समय नहीं दे पाता
कोई संताप.
क्यों लहराता है
तेरी आँखों में
समंदर प्यार का .

तुमसे मिलकर जाना
कैसा है ये मर्ज,
क्या है इसकी दवा ?

16 comments:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (16-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. जाने कितने सारे उत्तर,
    आ गये तेरे आने से।

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  3. लगता है पुराना प्यार याद आ रहा है राजीव जी.... अच्छी कविता है...

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  4. bahut badhiya rachna.dil se likhi huee.
    aabhaar.

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  5. pyar ka ek aseem ahsaas dikhata...bahut pyari rachna..!
    aisa lagta hai...kahin dil ke andar se ye aawaaj aayee ho...!!
    sangrah karne layak!!

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  6. वाह ... बहुत ही खूबसूरत प्रस्‍तुति ।

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  7. प्यार के एहसास की अनोखी अनुभूति
    बहुत खूब भैया ......

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  8. तुमसे मिलकर जाना
    कैसा है ये मर्ज,
    क्या है इसकी दवा ?
    बहुत बढ़िया रचना ।

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  9. तुमसे मिलकर जाना
    क्यों मीठी लगती है
    सूरज की आंच
    जब तुम होते हो साथ,
    क्यों जलाती है
    चाँद की शीतल चाँदनी,
    क्यों लग जाती है
    सावन में आग
    मेरे तन-मन में
    जब तुम नहीं होते हो पास......
    bahut sundar manko chhuti hui racha badhayi ho.

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  10. mar ke bhee kabhee jo khatm naa ho, ye pyaar kaa wo afasaanaa hai
    tum bhee to humaare saath chalo, to hum ko wahaa tak jaanaa hai
    wo zum ke apanee dharatee se, aakaash jahaa mil jataa hai..tumse milker na jaane q..nice

    http://shayaridays.blogspot.com

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