तुम्हारे जाने के बाद
मेरा घर,मेरे सपने
वीरान हो गए
जहाँ तेरी बातें
गजल होती थी,
गीत होते थे
तेरे होठों से निकले बोल
क्योंकि तब
एक अलग दुनियां थी
हमारी.....
तुमसे मिलने की चाहत
तब भी थी,
अब भी है.
आनेवाले कल की कौन कहे?
कौन जाने?
अब तो नज़रों के सामने
दो जून की रोटी है
एकबार फिर
छोटे से घर का सपना है,
और एक दीया है
तेल को तरसता हुआ.
मखमली दूब
अब चुभती है,
तुम्हारे खयाल
गर्म सलाखों से
दिल में उतर जाते हैं.
समय के सलीब पर लटका मैं
नहीं देख सकता
पीछे मुड़कर.
जहाँ तुम आज भी खडी हो
मेरा अतीत बनकर.
लेकिन एक परकटे की उडान कैसी?
उसकी भावनाओं की पहचान कैसी?
बढ़िया विम्ब शीर्षक में ही... अच्छी कविता है... दूब का चुभना मर्मान्तक है.. यादों के गलियारे और विवशता का द्वन्द बढ़िया है..
ReplyDeleteबेहद गहन दर्द की अनुभूति।
ReplyDeleteसमय के सलीब पर लटका मैं
ReplyDeleteनहीं देख सकता
पीछे मुड़कर.
जहाँ तुम आज भी खडी हो
मेरा अतीत बनकर... पर जेहन में घूमती हो आज बनकर
अतीत के द्वंद्व को बहुत अच्छी तरह से उकेरा है. दिल को छू लेने वाली रचना. कुछ ऐसा होता है कि जो जीवन भर साथ रहता है और साथ न होकर भी अपने होने का अहसा करता रहता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब रचना! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteek parkate ki udaan kaisee...!!
ReplyDeletesach me aapne apne andar chalne wale soch ko bakhubhi darshaya...!! jeevan me aisa hi hota hai na.........
मखमली दूब
ReplyDeleteअब चुभती है,
तुम्हारे खयाल
गर्म सलाखों से
दिल में उतर जाते हैं.
समय के सलीब पर लटका मैं
नहीं देख सकता
पीछे मुड़कर.
जहाँ तुम आज भी खडी हो
मेरा अतीत बनकर...
..
aaj aap rulane ka pura man bana ke aaye hain lagta hai....
bahut sundar ye panktiyan bhi lajabaab hain.
मेरा घर,मेरे सपने
वीरान हो गए
जहाँ तेरी बातें
गजल होती थी,
गीत होते थे
तेरे होठों से निकले बोल
क्योंकि तब
एक अलग दुनियां थी
हमारी.....
पर कटवामे के बाद ही हमने उड़ने की सुध आयी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
ReplyDeleteartijha jha to me
ReplyDelete"bahut hi achhi abhibayakti....bite yaade akshar yaad aati hai..or fir sabad ban kar khud b khud kabitaon me dhalti chali jati hai..........."
स्मृतियों में बहुत कुछ रह जाता है ..
ReplyDeleteलेकिन एक परकटे की उडान कैसी?
उसकी भावनाओं की पहचान कैसी?
अच्छी प्रस्तुति
यादों की बेहतरीन प्रस्तुति व विवशता का भान ।
ReplyDeletebahut achi rachna
ReplyDeletekatu satya ko kitni sundarta se pesh kiya gaaya hai
राजीव जी एक बार फिर अंतर्मन को हिला देने वाली प्रस्तुति बहुत भावुक कर गई. ये अतीत ही है जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देता है और पश्चाताप के पल भी. मन के भावों को बेहद खूबसूरती से उकेरा है. मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट पोस्ट नहीं हो रहा है बताने के लिया आभार कल से उसी खोज बिन में लगी थी पता नहीं सही हुआ की नहीं
ReplyDelete'लेकिन एक परकटे की उड़ान कैसी ?'
ReplyDelete.......................गहरी वेदना की भावपूर्ण अभिव्यक्ति