काश!मैं बच्चा ही रहता
तो कितना अच्छा होता भगवान,
कम-से-कम
बना तो रहता
जिसे सब कहते हैं इन्सान,
होता सुख-दुःख के बेहद करीब
आंसू और किलकारी बनकर.
काश ! कोई कर पाता
मेरे बाल-मन से संवाद
तो समझ पाता
अपने-आपको ,
अपनी चाहत ,
अपनी परेशानी में
देख पाता
औरों की चाहत,
औरों की परेशानी.
पर
तुम कहाँ समझ पाओगे,
कहाँ देख पाओगे
मेरा पारदर्शी मन
अपने सपनों को
हमारे सपनों पर थोपकर,
कहाँ समझ पाओगे
सामाजिक सरोकारों से
दूर होते जाने का कारण .
मैं तो पूरी तरह निर्द्वंद्व,निष्कपट,
सखा-भाव का वाहक हूँ,
मां के आँचल में पलता
एक सुंदर सा स्वप्न हूँ.
कितने विवश थे
अपनी खुदी के सामने तुम ,
नहीं देख पाए
प्रकृति के संग
मेरा तारतम्य.
बस खेलते रहे चौपड़
जीवन की बिसात पर ,
चलते रहे अपनी चाल
कभी शकुनी
तो कभी युधिष्ठिर बनकर,
तैयार करते रहे
महाभारत की पृष्ठभूमि.
sundar sateek abhivyakti.
ReplyDeleteमां के आँचल में पलता
ReplyDeleteएक सुंदर सा स्वप्न हूँ.
.....
baalman ki saralta.
कितने विवश थे
ReplyDeleteअपनी खुदी के सामने तुम ,
नहीं देख पाए
प्रकृति के संग
मेरा तारतम्य.
बस खेलते रहे चौपड़
जीवन की बिसात पर ,
चलते रहे अपनी चाल
कभी शकुनी
तो कभी युधिष्ठिर बनकर,
तैयार करते रहे
महाभारत की पृष्ठभूमि....
per main na hone dunga ye
likhta rahunga
kaal ke kapal per masumiyat bharta rahunga
जीवन की बिसात पर ,
ReplyDeleteचलते रहे अपनी चाल
कभी शकुनी
तो कभी युधिष्ठिर बनकर,
तैयार करते रहे
महाभारत की पृष्ठभूमि....
बहुत ही गहन भावों को समेटे ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
आपकी रचना स्वतंत्र और मौलिक सूझबूझ की
ReplyDeleteभरपूर झलक निहित है। आपके उज्ज्वल भविष्य
की मंगलकामना के सहित
===========================
प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
bahut gambheer bhavon ko prastut kiya hai han yahi to baal man bad men sab vikaron se bhar uthata hai kash ham usako jivit rakh pate.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत आभार.
ReplyDeleteकाश!! ऐसा ही होता..बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteनव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनाये
baalman ki bahut hi sundar abhivaykti
ReplyDeleteमैं तो पूरी तरह निर्द्वंद्व,निष्कपट,
ReplyDeleteसखा-भाव का वाहक हूँ,
मां के आँचल में पलता
एक सुंदर सा स्वप्न हूँ.
बहुत सुंदर भाव हैं...और गम्भीर रचना
कभी कभी सगता है कि बचपन ही सर्वश्रेष्ठ समय था। सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबस खेलते रहे चौपड़
ReplyDeleteजीवन की बिसात पर ,
चलते रहे अपनी चाल
कभी शकुनी
तो कभी युधिष्ठिर बनकर,
तैयार करते रहे
महाभारत की पृष्ठभूमि.
बहुत गहन भाव...मन को छू जाते हैं...बहुत सुन्दर
आप बच्चे रहें न रहें, बचपना बना रहे आपका.
ReplyDelete.. इंसान कहाँ रह गया है इंसान.. बछो की मासूमियत छीन लिया है हमने... बहुत भावपूर्ण कविता.
ReplyDeleteकितने विवश थे
ReplyDeleteअपनी खुदी के सामने तुम ,
नहीं देख पाए
प्रकृति के संग
मेरा तारतम्य.
बस खेलते रहे चौपड़
जीवन की बिसात पर ,
चलते रहे अपनी चाल
कभी शकुनी
तो कभी युधिष्ठिर बनकर,
तैयार करते रहे
महाभारत की पृष्ठभूमि. gahan soch ...har bachcha nishchhal hota hai jeevan ki baji uske jeevan ka rukh mod deti hai...
कितने विवश थे
ReplyDeleteअपनी खुदी के सामने तुम ,
नहीं देख पाए
प्रकृति के संग
मेरा तारतम्य.
बस खेलते रहे चौपड़
जीवन की बिसात पर ,
बहुत ही बढ़िया भाव कि कविता. सीढ़ी और सटीक. बधाई एवं आभार.
बच्चों जैसे कोमल और निष्पक्ष भाव अगर मन में आ जाये आदमी के तो कहने ही क्या.सारा भ्रष्टाचार और पक्षपात अपने आप ही ख़त्म हो जाये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विषय चुना है आपने कविता के लिए.