बचपन नहीं पहेली
दर्पण होता है मन का.
उसकी हरकतें हँसाती है,
मन को गुदगुदाती है,
हर तनाव से दूर ले जाती है.
हाँ,पहेली सी लगती है
युवा मन को उसकी बातें.
क्योंकि नहीं होता कोई फर्क
उसकी कथनी और करनी में,
उसकी खिलखिलाहट में होती है
ख़ुशी की धूप ,
क्रंदन में दुःख की छाया.
छिपाए नहीं छिपते
उसके मन के कोमल भाव,
चाहे गुस्सा हो या प्यार
चेहरे पर साफ उभर आते हैं
बचपन नहीं होता जवानी सा
जहाँ होता है भेद-भाव,
आडम्बर का अम्बार .
वह तो उठता है,गिरता है,
फिर उठता है, आगे चल पड़ता है
क्योंकि प्रकृति होती है उसके साथ.
हमारा दर्पण है
धुंधला-धुंधला,उदास-उदास,
गमजदा चेहरे पर रहता है
मुखौटा मुस्कान का,
गुस्से में भी
चेहरेसे छलकता है प्यार
जिसे कहा जाता है
सभ्य समाज में "व्यवहार".
कर्म और सोच में सदा ही रहता है भेद,
लेकिन पाखंड की चाहरदीवारी होती है अभेद
आपकी कविता पढ़ती आई हूँ, हमेशा बहुत ही अच्छी होती है...आज भी बेहतर...
ReplyDeleteबचपन कि निश्छलता और मासूमियत को दर्शाती सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteफिर उठता है, आगे चल पड़ता है
क्योंकि प्रकृति होती है उसके साथ.
इसे यहीं समाप्त करना शायद और अच्छा लगे ।
शुभकामनायें ।
भाव पद्य की तरह, लेकिन संरचना गद्य की तरह. और बचपन तो मधुर होता ही है.
ReplyDeletebahut sundar bhavapoorn rachana ..badhai...
ReplyDeleteReally very meaningful post. HAPPY RAMNAVMI.
ReplyDeleteउसकी कथनी और करनी में,
ReplyDeleteउसकी खिलखिलाहट में होती है
ख़ुशी की धूप ,
क्रंदन में दुःख की छाया.
छिपाए नहीं छिपते
उसके मन के कोमल भाव
बहुत ही प्यारी, भावपूर्ण और अर्थपूर्ण....
bachpan aisa hi hota hai tabhi tamaam umr sath rahta hai hamare.
ReplyDeleteबचपन नहीं होता जवानी सा
ReplyDeleteजहाँ होता है भेद-भाव,
आडम्बर का अम्बार .
वह तो उठता है,गिरता है,
फिर उठता है, आगे चल पड़ता है
क्योंकि प्रकृति होती है उसके साथ.
prakriti to hamesha saath hoti hai, hum hi use nakar dete hain , per bachpan to khud mein prakriti ka roop hai
युवा को हर पर संशय होता है, बचपन पर भी। पर सत्य समझ में आते आते प्रौढ़ता आ जाती है।
ReplyDeleteबचपन नहीं होता जवानी सा
ReplyDeleteजहाँ होता है भेद-भाव,
आडम्बर का अम्बार .
वह तो उठता है,गिरता है,
फिर उठता है, आगे चल पड़ता है
क्योंकि प्रकृति होती है उसके साथ.
waha bahut khub likha hai aapne
aapki kavita padhne ke bad mujhe apn kavita ki kuch line yaad aa gayi bhaiya
कोई लौटा दे मेरे बचपन के दिन ....
दे मुझे वोह खुला आसमान
जहाँ ना हो टेंशन का आगमन ..
मै भी जी लू मस्त बन कर ....((anju...(anu..))
Mark Rai
ReplyDeleteto me
bahut hi achcha.
बहुत बढ़िया कविता...
ReplyDeleteआदरणीय राजीव सर एक अमेरिकन कवि हुए डेविड बेट्स .. उनकी एक कविता है "चाइल्डहुड " उस कविता की अंतिम पंक्तियों और आपकी कविता में बहुत साम्य है संवेदनाओं के धरातल पर... देखिये...
ReplyDelete""Tender twigs are bent and folded --
Art to nature beauty lends;
Childhood easily is moulded;
Manhood breaks, but seldom bends. ""
.. एक और उत्कृष्ट कविता के लिए आपको बधाई... नई ऊंचाई की कविता लिख रहे हैं आप !
हमारा दर्पण है
ReplyDeleteधुंधला-धुंधला,उदास-उदास,
गमजदा चेहरे पर रहता है
मुखौटा मुस्कान का,
गुस्से में भी
चेहरेसे छलकता है प्यार
जिसे कहा जाता है
सभ्य समाज में "व्यवहार".
कर्म और सोच में सदा ही रहता है भेद,
लेकिन पाखंड की चाहरदीवारी होती है अभेद
आइना दिखाया आपने राजीव भाई ...बहुत सुन्दर !
http://anandkdwivedi.blogspot.com/
sundar bhaav achhi kavita.
ReplyDeletebachapan sa nishchhal man jeevan ki kisi bhi aur avastha me pana mushkil hai....sunder vishleshan ....jeevan ki vibhinn avasthao ka...
ReplyDeleteबचपन पर लिखी यह कविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता| धन्यवाद|
ReplyDeletehai wo beeta bachpan.........!!
ReplyDeletebahut pyari si abhivyakti...sab kuchh to yaad kar liyaaa aapne:)
gyan chand
ReplyDeleteto me
सुन्दर प्रस्तुति !
बचपन नहीं होता जवानी सा
ReplyDeleteजहाँ होता है भेद-भाव,
आडम्बर का अम्बार .
वह तो उठता है,गिरता है,
फिर उठता है, आगे चल पड़ता है
क्योंकि प्रकृति होती है उसके साथ.
सच में बचपन यही होता है जहाँ पर किसी के लिए कोई भेदभाव नहीं बस प्यार ही प्यार है ....आपका आभार
कोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
दिल का समंदर और विचारो का दरिया सूख गया है
ReplyDeleteमन के भाव कही दूर अँधेरे में भटक रहे है ...
तभी कोई भी स्थिर नहीं है