सागर से सागर तक
तट से टकरा कर
लौटते हुए
खुद में समा रही हैं
क्षितिज के पार तक
विस्तार पा रही हैं
जीवन-सच बता रही है.
सूरज की किरणे
सागर जगा रही है,
बादल बना रही हैं,
धरती इशारे से
उन्हें
अपने घर
बुला रही है,
हरियाली का सबब
बन जाने को
उकसा रही है.
बादल गरज रहे हैं,
बिजली चमक रही है,
बरसात आ रही है,
रिमझिम के तराने,
जीवन-गीत गा रही है,
फैला रही है
उम्मीद का उजाला,
हर दिल में
तमन्नाएं जगा रही है.
बाधाओं को पार कर
जल की धाराएं
नदियों का रूप ले
अविरल
बही जा रही है
अपने ईष्ट की ओर
बढ़ी जा रही हैं.
एकबार फिर
तेरी लहरों में समाकर
एकाकार होने जा रही हैं
एकबार फिर
लहरें हुंकार भरेंगी,
तट से लौटकर
अनंत में खो जायेंगी.
चलता रहेगा सदा
यह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.
hriday ki bahut gahri baato ko vayan kiya hai.
ReplyDeleteचलता रहेगा सदा
ReplyDeleteयह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.
दिल को छू गयीं कविता की पंक्तियाँ !
आभार!
लहरों का बनना और लौट जाना सर्जना चक्र निरूपित करता है।
ReplyDeleteबाधाओं को पार कर
ReplyDeleteजल की धाराएं
नदियों का रूप ले
अविरल
बही जा रही है
अपने ईष्ट की ओर
बढ़ी जा रही हैं.
एकबार फिर
तेरी लहरों में समाकर
एकाकार होने जा रही हैं
aur anthin dwand ... bahut kuch kahti rachna
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सागर, सूरज और बादल ... यानि कविता.
ReplyDeleteएकबार फिर
ReplyDeleteलहरें हुंकार भरेंगी,
तट से लौटकर
अनंत में खो जायेंगी.
चलता रहेगा सदा
यह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.
दिल को छू लेने वाली कविता. उम्मीद की किरण दिखाती हुई. हर शाम के बाद सबेरा है. बहुत अच्छा.
सूरज की किरणे
ReplyDeleteसागर जगा रही है,
बादल बना रही हैं,
धरती इशारे से
उन्हें
अपने घर
बुला रही है,
हरियाली का सबब
बन जाने को
उकसा रही है.
bahut umda rachna....man ke bahvo ko prakerti ke madhyam se aisa bandha hai ki bus sama dekhte hi ban gayi hai.....ek rakhchitra sa man me khich gaya hai ...badhai
प्रकृति का विवरण देकर अपनी बात को कहने का का एक सफल प्रयास |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
चलता रहेगा सदा
ReplyDeleteयह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.
बहुत खूब ..
लहरो का विम्व ले अच्छी कविता बनायी है आपने...
ReplyDelete"तेरी हुंकार भरती लहरें
तट से टकरा कर
लौटते हुए
खुद में समा रही हैं
क्षितिज के पार तक
विस्तार पा रही हैं
जीवन-सच बता रही है."
बहुत बहुत बधाई....
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteचलता रहेगा सदा
ReplyDeleteयह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.
climax बहुत सार्थक तथा भावनाओं से ओत प्रोत.
किन पंक्तिओं पर न लिक्खूँ
ReplyDeleteभावमयी भावुकता से भरपूर
प्रकृति के चक्र के माध्यम से बेहद सुन्दर बात कह दी आपने ! सृजन का यही चक्र कवि के हृदय में भी चलता रहता है ! भावनाओं के सूर्य का ताप, उससे बनने वाले बादल, और कविता के रूप में उन भावों की वृष्टि सारी उसी प्रक्रिया की आवृत्ति है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeletemini seth to me
ReplyDeletebahut khoob....its always a pleasure to read u
जब खुद में समा जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो खुदी पीछे छूट जाती है और मिल जाता है ख़ुदा....
ReplyDeleteअन्दर से बाहर और फिर बाहर से अन्दर की ओर गति ...सदा गतिमान "ज..ग..त" की परम्परा ......एक बिम्ब से कई सन्देश देने का सफल प्रयास.
बहुत सुन्दर रचना... वाह...
ReplyDeleteचलता रहेगा सदा
ReplyDeleteयह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.
जीवन दर्शन से भरपूर रचना
बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteगहरी बात सागर जैसी.
तेरी हुंकार भरती लहरें
ReplyDeleteतट से टकरा कर
लौटते हुए
खुद में समा रही हैं
क्षितिज के पार तक
विस्तार पा रही हैं
जीवन-सच बता रही
jeevan darshan aur prakriti ka combo...:)
kahin andar chhoo gaya...:)
badhai rajeev sir!
चलता रहेगा सदा
ReplyDeleteयह सर्जना चक्र
मेरे बाहर,
मेरे भीतर
एक अंतहीन द्वंद्व बनकर.
बहुत ही अच्छा....
आदरणीय राजीव सर
ReplyDeleteप्रणाम. काफी दिनों बाद इंटरनेट पर आना हुआ... आया तो आपकी कविता 'सागर से सागर तक' मिली... क्या सुन्दर कविता बनी है यह... जॉन मेस्फिल्ड का नाम तो सुना ही होगा आपने और पढ़ा भी होगा.. उनकी एक कविता है ''सी फीवर'' .. उसी कविता की दार्शनिक है आपकी कविता भी... पढ़िए कुछ पंक्तियाँ...
"I must go down to the seas again, to the vagrant gypsy life,
To the gull's way and the whale's way, where the wind's like a whetted knife;
And all I ask is a merry yarn from a laughing fellow-rover,
And quiet sleep and a sweet dream when the long trick's over....
बहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
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