Friday, October 15, 2010

एक दिन की आजादी

देकर एक दिन की आजादी
अपनी होशियारी पर इतराते हो,
करके धर्म के ठेकेदारों से सांठ-गांठ
अपनी-अपनी दुकानें चलाते हो,
दिन में तो दिखते हो अलग-अलग
रात को मयखाना साथ जाते हो।

सहारा लेते हो
भेद-भाव की राजनीति का ,
मंदिर-मस्जिद को
बताते हो अलग-अलग
राग और द्वेष की जहरीली
फसल उगाते हो,
अपनों को अपनों से लड़ाते हो ।

मौका पाते ही
बदल लेते हो अपनी चाल
ओढ़ लेते हो भेंड की खाल
स्वयं को हमारा
मसीहा बताते हो,
जनप्रतिनिधि कहलाते हो.

देकर हमें एक दिन की आजादी
सालो-साल तुम सब एक होकर
हमारी गुलामी का जश्न मनाते हो,
खून-पसीने की हमारी कमाई पर
खुलकर करते हो मौज
समझकर हमें बेवकूफ
हमारी भलमनसाहत का
मजाक उड़ाते हो.

अकड़ तो ऐसे दिखाते हो
जैसे तुम हो साहूकार,
हम तेरे कर्जदार
हम जनता नहीं है,
तुम हमारे प्रतिनिधि नहीं,
तुम तो कर रहे हो
हम पर अहसान,
मजबूरी में उठा रहे हो
हमारा भार.

डूबे रहते हो
भ्रष्टाचार में आकंठ
शर्मो-हया को छोड़कर
देश और देश की छवी का
खुलकर बजाते हो बैंड
होकर निडर, निःशंक,
जीतकर जो आते हो.

क्या सोचते हो ?
हम समझते नहीं हैं
तुम्हारी दोहरी चाल.
नहीं रहता हमें याद
हाथ जोड़कर
हर एक के आगे
तुम्हारा गिड़-गिडाना,
भरी दोपहरी में
गली-गली घूमना
बड़े-बूढों के तलवे सहलाना.

तुम्हारी नस-नस से
वाकिफ है हम ,
तुम्हारी हर फितरत है
हमारी निगाहों में
क्योंकि नदी तो वही है
जिसमें हम भी रहते हैं
तुम भी रहते हो .

हम तो बस
तुम्हें समझने का,
संभलने का
दे रहे हैं एक मौका ,
तलाश रहे हैं
एक अदद चेहरा
जो खो गया है
तुम जैसों की भीड़ में.

10 comments:

  1. आज की राजनीति और नेताओं पर अच्छा कटाक्ष..सुन्दर समसामयिक प्रस्तुति...आभार

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  2. अच्छी कविता है.. गंभीर टिप्पणी है लोकतंत्र पर... अंतिम पक्तियां कविता को नई ऊंचाई पर ले जा रही है..

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  3. 5/10


    सुन्दर सजग लेखन
    और भी बेहतर होने की भरपूर गुंजाईश है

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  4. देकर हमें एक दिन की आजादी
    सालो-साल तुम सब एक होकर
    हमारी गुलामी का जश्न मनाते हो,
    खून-पसीने की हमारी कमाई पर
    खुलकर करते हो मौज
    समझकर हमें बेवकूफ
    हमारी भलमनसाहत का
    मजाक उड़ाते हो.

    bhaut khub, bilkul sach kaha apne ye hee hoo raha hai

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  5. राजनीति की तो बखिया उधेर दी आपने..बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ,,अभी बिहार में चुनाव होने वाले हैं...यहाँ तो खूब चलेगी यह rachna...

    मेरे ब्लॉग पर इस बार ....

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  6. उस्ताद जी से सहमत!

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  7. अच्छा सधा हुआ कटाक्ष

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  8. Vijai mathur
    to me
    राजीव जी ,
    आपकी कविता पढ़ीं न केवल अक्षी है बल्कि हकीकत बयान करने वाली है.नेताओं के लक्क्षण आपने सही बताये है ऐसे ही जनता को ठगा जा रहा है.जनता को जागरूक करने के उपाए भी बताएं .

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  9. बड़ी प्रासंगिक टिप्पणियां हैं... अज के हालात पर ..... बहुत खूब

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  10. sateek baten.....saf suthra aina badrang akson ko.....

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