Sunday, October 10, 2010

काश ! दर्पण मुझमें समा जाता.....

काश !
मैं दर्पण में
और
दर्पण
मुझमें
समा जाता,
चला जाता
मेरे जेहन के पार।

मेरे भीतर का मैं
उससे दो-चार हो पाता
और देख पाता
अपने भीतर की
कश्मकश,
निरंतर जारी
द्वंद को पढ़ पाता
भले-बुरे का भेद
समझ पाता
खुद को इन्सान
बना पाता।


देख पाता
किसी के लिए घृणा,
किसी के लिए प्यार,
कहीं श्रद्धा से नत मस्तक,
कही विश्वास की झलक,
आत्मविश्वास की पकड़,
कहीं नास्तिक मन की अकड़
उस दर्पण में।

ढूंढ पाता
उसके पीछे का राज
अपने भीतर,
कर पाता
उसमें सुधार.
कारणों के जाल से
बाहर निकल,
अपनों से भरा,
अपनेपन से भरा
एक सुंदर सा संसार
बसा पाता
तो दर्पण का मुझमें,
मेरा दर्पण में समाना
सार्थक हो जाता।

12 comments:

  1. aankhen band kijiye ho jayega khud se akakar apna aap

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  2. "ढूंढ पाता
    उसके पीछे का राज
    अपने भीतर,
    कर पाता
    उसमें सुधार.
    कारणों के जाल से
    बाहर निकल,
    अपनों से भरा,
    अपनेपन से भरा
    एक सुंदर सा संसार
    बसा पाता
    तो दर्पण का मुझमें,
    मेरा दर्पण में समाना
    सार्थक हो जाता। ".... सुंदर रचा.. ऐसे दर्पण में सब सामना चाहेगा..

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  3. कारणों के जाल से
    बाहर निकल,
    अपनों से भरा,
    अपनेपन से भरा
    एक सुंदर सा संसार
    बसा पाता
    तो दर्पण का मुझमें,
    मेरा दर्पण में समाना
    सार्थक हो जाता।
    जब ये हो जायेगा फिर और कोई चाहना नही बचेगी…………।बेहद उम्दा पर्स्तुति।

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  4. मेरा मुझसे परिचय हो जाए तो बहुत सारे प्रश्न यू ही हल् हो जाएंगे। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    दुर्नामी लहरें, को याद करते हैं वर्ल्ड डिजास्टर रिडक्शन डे पर , मनोज कुमार, “मनोज” पर!

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  5. बहुत ही खुबसूरत..सुन्दर भाव..यूँ ही लिखते रहें....
    मेरे ब्लॉग पर इस बार

    एक और आईडिया....

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  6. एक सुंदर सा संसार
    बसा पाता
    तो दर्पण का मुझमें,
    मेरा दर्पण में समाना
    सार्थक हो जाता।

    -अति सुन्दर अभिलाषा...

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  7. ढूंढ पाता
    उसके पीछे का राज
    अपने भीतर,
    कर पाता
    उसमें सुधार.
    कारणों के जाल से
    बाहर निकल,
    अपनों से भरा,
    अपनेपन से भरा
    एक सुंदर सा संसार
    बसा पाता
    तो दर्पण का मुझमें,
    मेरा दर्पण में समाना
    सार्थक हो जाताbahut sunder bhav....

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  8. घोंसले का इंटेलिजेंट अंडा!
    उम्दा!
    आशीष
    --
    प्रायश्चित

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  9. सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

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  10. अपने आप को जानने की इच्छा कम ही लोगों में होती है, आपकी कविता आपकी ईमानदारी को अभिव्यक्त करती है।...सुंदर रचना, बधाई।

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  11. अपने आप से पहचान ..बस यही हो जाये फिर क्या है .बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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  12. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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