दर्द
होता है
ईश्वर की तरह
निराकार ,
पर,नहीं होता है
निराधार .
यह भी होता है
सर्वव्यापी
उसी की तरह,
होते हैं इसके भी
कई-कई रूप.
नहीं होता इसका
अलग-अलग रंग,
बस चोट होती है
अलग-अलग
दिखी-अनदिखी सी.
दर्द का
कोई चेहरा नहीं होता,
हर चेहरे पर
उभर आता है ये दर्द
आइना बनकर.
आंसू और मुस्कान में
छुपा रहता है.
वेदना-अंतर्वेदना में
बंटा रहता है
ये दर्द
सृजन का सार बनकर,
रिश्तों का आधार बनकर.
dard ... deta hai zindagi ko akaar , wahi uska chehra hai ,
ReplyDeletebahut hi achhi rachna
बहुत अच्छा कविता. आप कविता के विभिन्न पहलुओं को समझा दिया है. अंतिम पंक्तियों अद्भुत हैं.
ReplyDeleteपूरे अस्तित्व में हो जाता है व्याप्त यह दर्द।
ReplyDeletedard ko jatane ka tareeka behad umda hai bhai sahab!!
ReplyDeletebadhai!!..:)
यह बात तो सही है कि दर्द का कोई चेहरा नहीं होता।
ReplyDeleteआंसू और मुस्कान में
ReplyDeleteछुपा रहता है.
वेदना-अंतर्वेदना में
बंटा रहता है
ये दर्द
सृजन का सार बनकर,
रिश्तों का आधार बनकरadbhut sachchhai hai in panktiyon me ye dard hi adhar hai is jeevan ka...
bahut sunder rachna rajiv sir. dard ko bakhobi mehsoos kiya hai aapne...saadar
ReplyDeleteदर्द तो दर्द है. दर्द चेहरे पर आ जाता है चाहे दर्द का कोई चेहरा नहीं होता.
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