जबसे
मेरी गोद में
आई थी
नन्ही सी जान,
उसी में जा बसे थे
मेरे प्राण.
झांकती थी
मेरी आँखें
उसकी आँखों में
जहाँ तैर रहे थे सपने
मेरे बचपन के,
उसके नैन-नक्श में
देखती थी
अपना शैशव.
यह था
ईश्वर का अमूल्य
वरदान
मेरे लिए.
नहीं हो रहा था
विश्वास
मेरी गोद में
लेटी थी सृष्टि
अपनी पूर्णता के साथ .
कांपते हाथों से
सहलाये थे मैंने
उसके कोमल गात
उसके मखमली बाल,
लग रहा था छू रही हूँ
जैसे पंखुड़ियाँ गुलाब की,
हो रहा था एक अजीब सा
सिहरन-भरा अहसास .
उसके आने से
और आसमानी हो गया था
मेरे मन का आकाश,
निकल आया था पूरा चाँद
अपनी चाँदनी के साथ
चारो ओर फैला था
अद्भुत प्रकाश।
पहली बार मैं
अपने सपनों को
सहला रही थी
उसकी ऊँगली पकड़ ,
लग रहा था मानों
मैं ही लेटी हूँ
अपनी गोद में .
itanee sundar kavita evam bhavo ke liye dhanyawaad... aapkee beti ko lots of hearty wishes...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना... मन को छू गई..
ReplyDeletemaine mahsoos kiya apne din ko
ReplyDeleteवात्सल्य भरी पोस्ट, वाह।
ReplyDeleteलग रहा था मानों
ReplyDeleteमैं ही लेटी हूँ
अपनी गोद में .
बस यही अंतर है गोदी में और झूले में। झूले को गोदी बनायें या गोदी को झूला; यही अंतर पैदा करता है।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।
राजीव जी,
ReplyDeleteअद्भुत है, आखिर आपने कैसे भरे एक ममतापूर्ण वात्सल्य भरी मां के भाव।
4/10
ReplyDeleteवात्सल्यपूर्ण रचना
सुन्दर भावों को समेटने का अच्छा प्रयास
उसके आने से
ReplyDeleteऔर आसमानी हो गया था
मेरे मन का आकाश
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति ।
अच्छे भाव पिरोये
ReplyDeleteयही भाव उठते हैं..बहुत कोमल!!
ReplyDeleteपहली बार मैं
ReplyDeleteअपने सपनों को
सहला रही थी
उसकी ऊँगली पकड़ ,
लग रहा था मानों
मैं ही लेटी हूँ
अपनी गोद में .
सुंदर भावाव्यक्ति अच्छी लगी ( एक टंकण त्रुटी कोमल गाल करलें)
स्नेह के रंगों में पूरी तरह से डूबी हुई रचना..बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने...
ReplyDeleteएक माँ के भावों को रचना में समेट लिया है ...वैसे यह भाव एक पिता के भी हैं ...आप अपनी तरफ से लिखते तो ज्यादा प्रभावशाली लगती यह रचना ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletejenny shabnam
ReplyDeleteto me
bahut sundar rachna, beti hoti hin hai ghar ki raunak aur gharwaalon ki jaan. rachna keliye badhai.
parantu aapne blog ka link nahi diya.
aabhar
jenny
2010/10/29
एक माँ के भावो को इतनी सुंदरता से वो भी एक पुरुष मन से सुच में काबिले तारीफ है.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
mamta se sarabor inkavitaon ke liye bhadai
ReplyDelete--
:MOHD IRSHAD
पहली बार मैं
ReplyDeleteअपने सपनों को
सहला रही थी
उसकी ऊँगली पकड़ ,
लग रहा था मानों
मैं ही लेटी हूँ
अपनी गोद में bahut adbhut ehsas hota hai ye apni dhadkan ko apani god me khilkhilate dekhna....
आपकी दोनों कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं. क्या ये अंतर्जाल पर प्रकाशित हैं.
ReplyDeleteकृष्ण कुमार यादव
www.kkyadav.blogspot.com
"बेटियां नहीं अब बोझ.....
एक दिन की आजादी"