रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
फैलाना हो उजाला
अँधेरे के उसपार
तो रवि हो जाओ.
किसी बेचैन मन को
देना हो करार
तो शीतल शशि हो जाओ,
गर जानना चाहो
जल की जात
तो जलपरी हो जाओ.
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
लाली देखनी हो
तो करो
उगते सूरज की बात,
गर देखना हो
हरियाली का असर
तो रेगिस्तान में
एक पौधा लगा आओ.
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
समझाना चाहो
गति जीवन की
तो नदी हो जाओ,
समाना चाहो
सबको अपने भीतर
तो समंदर से अनंत हो जाओ,
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
बसना है
किसी के दिल में
तो कोई दर्द-भरा गीत
बन जाओ.
रहना चाहो
किसी की आँखों में
तो एक सुदर सी छवि
बन जाओ.
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
जो चाहो लेना
छांव का आनंद
तो छिप जाओ
मां के आँचल में,
जेठ की दोपहरी में
घने बरगद के तले
आ जाओ .
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
गर लेना है
मौसम का मजा
तो मत घबराओ
कड़कती बिजलियों से,
गरजते मेघों से
सावन की झड़ी में
खो जाओ.
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
महकना है तो महको
औरों केलिये
फूल बनकर,
जीना है तो जियो
जीवन-भर
बाग का माली बनकर
जीवन को दिशा,
एक नया अर्थ दे जाओ
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
बहुत ही भावपूर्ण रचना ! प्राकृतिक बिम्बों का बहुत सुंदरता के साथ प्रयोग किया गया है ! अति सुन्दर ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteरिश्तों का मर्म समझना हो तो कवि हो जाओ ...
ReplyDeleteलाख टके की बात !
रिश्तों का मर्म समझना है
ReplyDeleteतो कवि हो जाओ.
kitni sadharan si baat, lekin bahut bada arth..sach me kavi jaisa saral hriday pakar hi koi rishto ko sahi roop me nibha payega, aisa lagta hai mujhe bhi...:)
Rajeev sir, aapke andaje-bayan ek dum alag hi hain..!
रचनात्मक अभिव्यक्ति है यह ! कवि होना अर्थात संवेदनशील होना है..
ReplyDeleteमहकना है तो महको
ReplyDeleteऔरों केलिये
फूल बनकर,
जीना है तो जियो
जीवन-भर
बाग का माली बनकर
जीवन को दिशा,
एक नया अर्थ दे जाओ
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
सुन्दर और सहज शब्दों में गहन भाव समेटे
लाजवाब प्रस्तुति ।
vandana gupta to me
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द चयन और भावाव्यक्ति…………आपकी रचनाये मन छू लेती हैं।
कवि हुए की नहीं, तो नहीं पता... हाँ पर इन सब के अहसास एक बार गुजरना है, और इसीलिए कागज़ बन जाने की तम्मना है... कहीं-न-कहीं से कोई-न-कोई हर बात लिख ही देगा...
ReplyDeleteपरन्तु खूब विश्लेषण किया है आपने..
महकना है तो महको
ReplyDeleteऔरों केलिये
फूल बनकर,
यही है रिश्तों का मर्म। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
veena srivastava to me
ReplyDeleteबसना है
किसी के दिल में
तो कोई दर्द-भरा गीत
बन जाओ.
रहना चाहो
किसी की आँखों में
तो एक सुदर सी छवि
बन जाओ.
बहुत ही खूबसूरत रचना
कहने को शब्द नहीं....
'रिश्तों का मर्म समझना है तो कवि हो जाओ'। रिश्तों में भी भाव प्रधानता होती है और काव्य में भी।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत बात कही आपने।
कवि की दृष्टि गहरी होती है, विस्तृत होती है, सामयिक होती है। बहुत सुन्दर कविता।
ReplyDeleteएक संवेदनशील मन से निकली बेहद खूबसूरत कविता
ReplyDeleteaur us marm ko samajhker apne khaalipan ko tatolte raho
ReplyDeleteरिश्ते अबूझे-से और अपरिभाषित ही बेहतर.
ReplyDeleteरिश्तों का मर्म समझना है
ReplyDeleteतो कवि हो जाओ.
बहुत बढिया.
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुभ कामनाये
रिश्तों का मर्म समझना है
ReplyDeleteतो कवि हो जाओ.
क्या बात है.......
पूरी कविता अच्छी है.
रिश्तों का मर्म समझना है
ReplyDeleteतो कवि हो जाओ.
सही कहा
behad bhaavpurn abhivyakti, badhai.
ReplyDeleteअत्यंत खूबसूरत रचना है महोदय. मजा आ गया पढके. लिखते रहिए.
ReplyDelete--
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बहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबसना है
किसी के दिल में
तो कोई दर्द-भरा गीत
बन जाओ.
रहना चाहो
किसी की आँखों में
तो एक सुदर सी छवि
बन जाओ.
रिश्तों का मर्म समझना है
तो कवि हो जाओ.
बहुत ही खूब.
सलाम.
bahur hi sudar abhivaykti..
ReplyDeleteहफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
ReplyDeleteमगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
सुन्दर रचना के लिये बधाई।
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