आज
हर तरफ सूखा है,
भीतर-बाहर
सब कुछ रुखा-रुखा है
बादल भी हो रहे हैं सफ़ेद.
इंसानों की कौन कहे
बिगड़ी हुई है
प्रकृति की भी चाल
पेड़ों ने भी नहीं ओढ़ी है
अभीतक
हरे पत्तों की शाल,
उतरा हुआ है
खेतों का भी रंग,
कुछ ठीक सा नहीं लगता,
समय का रंग-ढंग.
एकबार फिर
आने दो वसंत
चारो ओर
चहकने दो चिड़ियों को
डाली-डाली,
नदियों को
कल-कल बह जाने दो,
झरनों को
झर-झर झर जाने दो,
खेतों में खिल जाने दो
सरसों के पीले फूल.
चुन लेने दो
तितलियों को
मनचाहे फूल,
भवरों को
झूम लेने दो
पीकर मकरंद,
बिछ जाने दो
हरियाली की चादर
चारो ओर
बह लेने दो
एकबार फिर
मंद-मंद
सिहरन भरा समीर,
घुल जाने
दो हवाओं में भंग,
छा जाने दो
चतुर्दिक उमंग.
शेमल के फूलों से
चुरा कर रंग लाल
बना लो गुलाल,
खेलो होली
एक-दूजे के संग.
रंग दो
मन का कोना-कोना,
अंग-अंग.
दो रिश्तों को
नया जीवन,
वसंत को आने दो
बार-बार,बार-बार,
लगातार,
सबकुछ
वासंती हो जाने दो.
वसंत पर इस से सार्थक कविता नहीं पढ़ी है इन दिनों.. आपकी रचनात्मक अभिव्यक्ति नई ऊंचाई को छू रही है..
ReplyDeleteअभिव्यक्ति को
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के साथ मिले
तो बहुत अच्छी रचना हो उठती है ...
बहुत ही उम्दा अभ्व्यक्ति.
ReplyDeleteसलाम
दो रिश्तों को
ReplyDeleteनया जीवन,
वसंत को आने दो
बार-बार,बार-बार,
लगातार,
सबकुछ
वासंती हो जाने दो.
बहुत ही सार्थक और उत्कृष्ट रचना..
आया बसंत, आया बसंत.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना! आज का वातावरण मे बदलाव और बसन्त की सच्चाई बखुबी उतरी है इस रचना मे! बधाई हो!
ReplyDeleteदो रिश्तों को
ReplyDeleteनया जीवन,
वसंत को आने दो
बार-बार,बार-बार,
लगातार,
सबकुछ
वासंती हो जाने दो.
क्या बसंती छटा बिखेरी है इस सुंदर कविता के माध्यम से.
aameen
ReplyDeleteराजीव जी! आपकी दो पोस्टॉं के बीच का अंतराल यह इंगित करता है कि आप कविता को जीते हैं और तब जाकर कविता आकार लेती है!! वसंत को सही अर्थों में परिभाषित करती रचना!!
ReplyDeleteप्रकृति की भी बिगड़ी है चाल ,
ReplyDeleteखिल नहीं पा रहे इसलिए मन भी ...
वसंत अभी ठिठका है किनारे ही ...
मगर घोल कर रंग आने दो वसंत को ...
वसंत को आमंत्रित करती अच्छी कविता !
vasant aa chuka hai, bas uska asar dekhna baaki hai...sachchai me bhi aur aapke post me bhi..:)
ReplyDeletekya kahne hain, ek shandaar nimantran prakriti ko..:)
basant par saarthak badhiya kavita.
ReplyDeleteरिश्तों की बासंती बहार,
ReplyDeleteहर ओर प्रकृति का प्यार।
mini seth to me
ReplyDeletebahut khoob likha hai apne..
sabke kay jeevan mai sada basant ka agman
pyar bhara ho
श्री राजीव जी,
ReplyDeleteकविता के भाव अच्छे हैं लेकिन विस्तार अधिक होने के कारण विरल हैं।
शुभकामनाएं,
हरीश
Ranjana to me
ReplyDeleteवाह ...वाह...वाह...
लाजवाब....
क्या लिखा है आपने...मुग्ध कर दिया....
बहुत बहुत सुन्दर...
सचमुच नवपल्लव आने में विलम्ब कर रहे हैं...चारों ओर सब सूखा सूखा लग रहा है...न जग में उमंग न मन में ....
Tarkeshwar Giri to me
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना , साथ में लिंक भी भेज दिया करे.
बहुत ही सुन्दर रचना , साथ में लिंक भी भेज दिया करे.
Alokita to me
ReplyDeleteachi rachna hai
vandana gupta
ReplyDeleteto me
वाह मन मोह लिया.........सब कुछ वासंतिक हो गया..........सुन्दर प्रस्तुति.
Dr. Girish Kumar Verma to me
ReplyDeletevah! vah! ati sundar racana hai badhaee.
Dr. Danda Lakahnavi
दो रिश्तों को
ReplyDeleteनया जीवन,
वसंत को आने दो
बार-बार,बार-बार,
लगातार,
सबकुछ
वासंती हो जाने दो
वासंती रंगों में रंगी हुई चिंतनपरक सुन्दर रचना .
बहुत ही सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबधाई हो!
Sambandho ke darpan me hi aadmi ki haqiqat dikhti hai...
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