एकबार
जब तुम बहुत बीमार थे,
हम बिलकुल लाचार थे,
काटे नहीं कटता था
समय,
रातें लगती थी
सागर से गहरी,
दिन लगते थे
पहाड़ से.
तब हमने
हजार-हजार पलों में
बाँट लिए थे
अपने दिन,अपनी रातें,
हर पल में
निराशा एक वृत्त था,
आशा उसका केंद्र .
तुम्हारे लिए
क्रंदन और किलकारी
एक-दूसरे का
रहा होगा पर्याय,
रहे होंगे
जिंदगी और मौत
एक सिक्के को दो पहलू .
हमारे लिए तो यह
पल-पल जी गई मौत थी
आशंका और अवसाद भरी,
धडकनों की रफ़्तार में
हर कतरा खून था
सिहरा हुआ,
सिमटा हुआ.
पाकर तुम्हें
खोना नहीं चाहते थे हम,
असहाय से कभी तुम्हें ,
कभी आसमान की ओर.....
देखते थे हम.
हमारे पास
नदी के बीच डगमगाती
उम्मीद की नाव तो थी,
भरोसे की पतवार नहीं थी.
हमारी हर आस टिकी थी
उन अनजान थपेड़ों पर
जो मंझधार से बढ़ रही थी
किनारे की ओर.............
(हर किसी के जीवन में कभी न कभी ऐसा पल आता है)
जी सही है... हर किसी के जीवन में ये पल आते हैं...
ReplyDeleteकभी कोई इस पार होता है तो कोई उस पार से अनुभव करता है...
बहुत भावुक कर देने वाली रचना है...
Vani Sharma to me
ReplyDeleteआया था ..जब बेटी दो दिन तक जीवन और मौत के बीच झूलती रही !
वही पल वही तड़प फिर याद आ गयी !
Ranjana to me
ReplyDeleteसत्य कहा,हर किसी के जीवन में ऐसे पल आते हैं,पर ईश्वर सबको सामर्थ्य नहीं दते उन्हें इतने सुन्दर ढंग से शब्दों में अभिव्यक्त कर पाने की..
आप सौभाग्यशाली हैं..
शौभाग्यशाली हम भी हैं कि इतनी सुन्दर रचना पढने का सुअवसर पा रहे हैं...
हमारी हर आस टिकी थी
ReplyDeleteउन अनजान थपेड़ों पर
जो मंझधार से बढ़ रही थी
किनारे की ओर.............
और यह किनारा हमें सत्य से वाकिफ करवा देता है ...बहुत सुंदर आपका शुक्रिया
पाकर तुम्हें
ReplyDeleteखोना नहीं चाहते थे हम,
असहाय से कभी तुम्हें ,
कभी आसमान की ओर.....
देखते थे हम.
jivan ke aise pal mann ki jhanjhawaaton mein bhi kinara dhoondh lete hain
sir!! itna bhavuk mat bana do..:)
ReplyDeletebahut khubsurat rachna...kya kahne hain!!
बहुत सुंदर रचना -
ReplyDeleteऐसे पल आपकी जड़ें और मजबूत कर देते हैं -
दिखावा और थोथापन बहा ले जाते हैंबधाई इस रचना के लिए .
हमारे पास
ReplyDeleteनदी के बीच डगमगाती
उम्मीद की नाव तो थी,
भरोसे की पतवार नहीं थी.
जीवन के इस सफर में भरोसे की पतवार ही सबसे जरूरी है..
बहुत सुंदर.....
पाकर तुम्हें
ReplyDeleteखोना नहीं चाहते थे हम,
असहाय से कभी तुम्हें ,
कभी आसमान की ओर.....
देखते थे हम.
Very nice lines. Congrats...
तब हमने
ReplyDeleteहजार-हजार पलों में
बाँट लिए थे
अपने दिन,अपनी रातें,
हर पल में
निराशा एक वृत्त था,
आशा उसका केंद्र .
वाह,क्या बात है !
गहन अभिव्यक्ति
कोई अन्जान लहर हमें सहायता पहुँचा जाती है।
ReplyDeleteTarkeshwar Giri
ReplyDeleteto me
अति सुन्दर रचना.
बीत जाते हैं ये पल, आ जाते हैं आशाओं के किनारे.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता .आपकी पीड़ा को गहरे तक महसूस किया जा सकता है .
ReplyDeleteसच है हर किसी के जीवन में आता है यह पल और बीत भी जाता है.. जिस तरह आपने एकएक शब्द बिठाये हैं वह कविता के भाव को उकेरने में सफल रहा है!! दिल में उतरते भाव!!
ReplyDeleteकिसी के दर्द को शब्द देना ही तो कविता है
ReplyDeleteरिश्तों की नीव है यह कविता...
ReplyDeleteहमारे पास
ReplyDeleteनदी के बीच डगमगाती
उम्मीद की नाव तो थी,
भरोसे की पतवार नहीं थी.
हमारी हर आस टिकी थी
उन अनजान थपेड़ों पर
जो मंझधार से बढ़ रही थी
किनारे की ओर.............
सच कहा है राजीव जी. ऐसे पल सब की जिंदगी का हिस्सा हैं जो ऐसे मंझधार से सलामत निकल आते हैं वही मंजिल पा जाते हैं बहुत सुंदर. बधाई.
ऐसे समय आशा और सकारात्मकता ही उम्मीद बनाये रखती है..... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteMukesh ji bahut umda rachna.....isi ka naam to jindagi hai ...........
ReplyDeleteराजीव जी,
ReplyDeleteये अनुभव तो वाकई हर इंसान किसी न किसी पल ले ही लेता है. वो भाग्यशाली है जिसको इस तरह के अनुभव का सामना न करना पड़े. यही दुआ है कि ऐसे पलों से भगवान हर किसी को बचा के रखे. मेरा भोगा हुआ यथार्थ है इसलिए ये दुआ है शेष सभी के लिए.
आदरणीय राजीव सर
ReplyDeleteइस बार कुछ अधिक समय ही लग गया आपके पास आने में.. आपकी अनुभव कविता बहुत मार्मिक है और संयोग देखिये कि मैं अभी एक प्रतिष्ठित कवि युसफ कोंयुकावा जिन्हें १९९४ में प्लुत्ज़ेर पुरस्कार भी मिला था , उन्हें पढ़ रहा था और कुछ पंक्तिया आपसे शेयर करता हूँ...
"
Togetherness
Someone says Tristan
& Isolde, the shared cup
& broken vows binding them,
& someone else says Romeo
& Juliet, a lyre & Jew’s harp
sighing a forbidden oath,
but I say a midnight horn
& a voice with a moody angel
inside, the two married rib
to rib, note for note. Of course,
I am thinking of those Tuesdays
or Thursdays at Billy Berg’s
in LA when Lana Turner would say,
“Please sing ‘Strange Fruit’
for me,” & then her dancing
nightlong with Mel Torme,
as if she knew what it took
to make brass & flesh say yes
beneath the clandestine stars
& a spinning that is so fast
we can’t feel the planet moving.
Is this why some of us fall
in & out of love? Did Lady Day
& Prez ever hold each other
& plead to those notorious gods?
I don’t know. But I do know
even if a horn & voice plumb
the unknown, what remains unsaid
coalesces around an old blues
& begs with a hawk’s yellow eyes." .. हलाकि सन्दर्भ अलग है , पृष्ठभूमि पृथक है लेकिन साथ होने के एहसास एक से हैं... शुभकामना सहित
पलाश
हमारी हर आस टिकी थी
ReplyDeleteउन अनजान थपेड़ों पर
जो मंझधार से बढ़ रही थी
किनारे की ओर.............aur is aas ki majbooti hi dolati nav ko har majhadhar har bhanvar se nikal le jati hai...
हमारी हर आस टिकी थी
ReplyDeleteउन अनजान थपेड़ों पर
जो मंझधार से बढ़ रही थी
किनारे की ओर.............
बहुत मार्मिक..हर इंसान के जीवन में ऐसा दिन भी आता है, पर यह आशा की पतवार ही नौका को मझधार से निकाल ले जाती है..
dard ko shabdon men piro diya hai,bhawnaon se bhigo diya hai .
ReplyDeleteतब हमने
ReplyDeleteहजार-हजार पलों में
बाँट लिए थे
अपने दिन,अपनी रातें,
हर पल में
निराशा एक वृत्त था,
आशा उसका केंद्र .
...nirasha mein aashwan bane rahna yahi to jeewan kaa aadhar hai..
bahut sundar marmsparshi rachna
पाकर तुम्हें
ReplyDeleteखोना नहीं चाहते थे हम,
असहाय से कभी तुम्हें ,
कभी आसमान की ओर.....
देखते थे हम.
हमारे पास
नदी के बीच डगमगाती
उम्मीद की नाव तो थी,
भरोसे की पतवार नहीं थी.
दर्द को बड़े करीने से संजोया है आपने अपनी इन पंक्तियों में. रचना बहुत अच्छी बन पड़ी है
बहुत ही उमदा और सच्चाई भरी रचना!
ReplyDeleteहमारे लिए तो यह
ReplyDeleteपल-पल जी गई मौत थी
आशंका और अवसाद भरी,
धडकनों की रफ़्तार में
हर कतरा खून था
सिहरा हुआ,
सिमटा हुआ......................
.बहुत खूब ...किसी अपने को खो देना का डर
आपकी कृति में साफ़ दिखता है.....निशब्द कर दिया अपने मन के भावो से
so nice.....thanks.
ReplyDeleteहमारे पास
ReplyDeleteनदी के बीच डगमगाती
उम्मीद की नाव तो थी,
भरोसे की पतवार नहीं थी.
हमारी हर आस टिकी थी
उन अनजान थपेड़ों पर
जो मंझधार से बढ़ रही थी
किनारे की ओर.............
ज़िंदगी में आते हैं बहुत बार ऐसे पल जब केवल उम्मीद ही प्रेरणा देती है ... अच्छी प्रस्तुति