चल यादों की डोर पकड़कर
अब अतीत की ओर चलें हम
फिर ढूंढें कुछ अच्छे मोती
जिससे अपना कल बन जाये ।
झर - झर झरते झरने होंगे
कल - कल करती नदियाँ होंगी
आगे खड़ा समंदर होगा
मिलन बड़ा ही सुन्दर होगा ।
खेतों में हरियाली होगी
लोगों में खुशहाली होगी
"दर्शन " चाहे अलग-अलग हो
'चूल्हा ' सबका एक रहेगा ।
आओ मिलकर दीप जलाएं
रिश्तों में उजियारा लायें
दुःख की बात करें न कोई
रिश्ते हों, सुख ही सुख हो ।
" आओ मिलकर दीप जलाएं
ReplyDeleteरिश्तों में उजियारा लायें
दुःख की बात करें न कोई
रिश्ते हों, सुख ही सुख हो । "... an utopian dream... good to read !
सबका एक सा हाल है
ReplyDeleteबहुत कुछ पाने की प्रत्याशा में
हम बहुत दूर निकल गए हैं.......
आओ पीछे लौट चलें