Thursday, January 7, 2010

अब रिश्तों की बात करें हम

चल यादों की डोर पकड़कर
अब अतीत की ओर चलें हम
फिर ढूंढें कुछ अच्छे मोती
जिससे अपना कल बन जाये ।

झर - झर झरते झरने होंगे
कल - कल करती नदियाँ होंगी
आगे खड़ा समंदर होगा
मिलन बड़ा ही सुन्दर होगा ।

खेतों में हरियाली होगी
लोगों में खुशहाली होगी
"दर्शन " चाहे अलग-अलग हो
'चूल्हा ' सबका एक रहेगा ।

आओ मिलकर दीप जलाएं
रिश्तों में उजियारा लायें
दुःख की बात करें न कोई
रिश्ते हों, सुख ही सुख हो ।

2 comments:

  1. " आओ मिलकर दीप जलाएं
    रिश्तों में उजियारा लायें
    दुःख की बात करें न कोई
    रिश्ते हों, सुख ही सुख हो । "... an utopian dream... good to read !

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  2. सबका एक सा हाल है
    बहुत कुछ पाने की प्रत्याशा में
    हम बहुत दूर निकल गए हैं.......
    आओ पीछे लौट चलें

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