तुमने शब्द लिए ,शरीर लिया
आत्मा नही ली ,भाव नही लिए
तुम तो बस कहते रहे ,कहलवाते रहे
"शिकारी आएगा ,जाल बिछायेगा ,दाना डालेगा
लोभ से उसमें फँसना नही "
तुमने न तो "शिकारी" देखा है,न ही जाल
और न ही समझा है लोभ से उसमें फँसना
यही कारण है कि हमेशा कि तरह
इसबार भी तुम "जाल" में हो अमानवीय कृत्यों के
कहीं आतंकवाद ,तो कहीं सम्प्रदायवाद के
हर बार तुम आतंकवादी हो कभी यहाँ तो कभी वहां
सिंदूर पोंछते हुए ,गोद उजाड़ते हुए
हजारों बच्चों को अनाथ बनाते हुए
तुम न तो ईसा हो न बुद्ध ,न पैगम्बर
तुम तो गाँधी भी नही हो
तुम तो कि खाल ओढे
कभी सिख ,कभी ईसाई ,कभी हिंदू तो कभी मुसलिम हो
तुम इन्सान न तब थे और न ही अब हो
तुम तो हैवान हो ,हैवान
क्योंकि तुम अब भी कह रहे हो
"शिकारी आएगा ,जाल बिछायेगा ,दाना डालेगा
लोभ से उसमें फँसना नही " जाल के भीतर से
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