क्या तुम मेरे धृतराष्ट्र होने का `पाप` माफ़ करोगे
क्या माफ़ करोगे मेरी पत्नी गांधारी को
जो आंखों पर पट्टी बांधे मेरे आगे-पीछे घूमती रहती है ,
मैंने अपनी कुत्सित अभिलाषाओं और इच्छाओं को
अपने बच्चों की रगों में दौड़ाया है
गांधारी को रोका है पतिव्रत की याद दिला कर
ताकि वह बच्चों को सही राह न दिखला सके
मैंने सदियों पहले भी यही पाप किया था,
करता गया ,करता गया ,करता गया ............
और आज भी किए जा रहा हूँ
मैं "आंखों वाला धृतराष्ट्र " पैदा कर रहा हूँ
यह जानते हुए भी कि निर्दोष दुर्योधन
एक दिन मुझसे सवाल करेगा
"मेरा कसूर क्या है ,पापा?
फिरभी मैं अपने को रोक नही पता हूँ
शकुनी मुझ पर हावी है
और मैं एक युग हो गया हूँ -"धृतराष्ट्र युग "
Mai ek yug ho gaya hun...! Oh...!
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बहुत ही अच्छी रचना.......
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bhut sarthak rachna .
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