Thursday, December 17, 2009

जीवन के रंग अपनों के संग

लोग कहते है
बूढ़े बरगद वाले गाँव के लोग
बड़े अच्छे है, मन के सच्चे है
वहीँ से आया हूँ मैं।
चाहे कुछ भी हो जाये
अपने इस अतीत से जुडा रहूँगा मैं
क्योंकि मेरे वर्तमान, मेरे भविष्य के तार,
जुड़े हैं उनसे।
तुम छोड़ सको तो छोड़ जाना अपना अतीत,
अपना गाँव, अपने लोग,
जो आज भी हर होली, दिवाली,
तुम्हारे आने कि बाट जोहते हैं ,
आने पर ख़ुशी मनाते हैं।
तुम जी लेना अपना वर्तमान- जड़हीन,कटा-कटा,
टुकड़ों में बँटा-बँटा।
विवशता कहें या सुविधापरस्ती या कहें चाहत ,
क्या शहर ,क्या देहात ,
आज तो हर जगह लोग जी रहे हैं ,
टुकड़ा-टुकड़ा धरती ,टुकड़ा-टुकड़ा आसमान।
रिश्तों के नाम पर-पति-पत्नी और एक या दो वर्तमानी बच्चे,
जिनका सिर्फ वर्तमान है,अंतहीन वर्तमान,
अतीत है भी तो कितना सतही।
माँ-पिताजी - बस ,
आगे भी माँ-पिताजी- बस ,
आदि भी यही अंत भी यही।
नहीं जी पाउँगा ऐसा वर्तमान ।
मुझे तो अतीत से निकला वर्तमान दो ,
उसमें में मैं पीढ़ियों से जुडा हूँ - पीढियां
जो अतीत को वर्तमान से और वर्तमान को भविष्य से जोडती हैं आज भी।

2 comments:

  1. rishto ki kasak, sambandho ki garmahat ko berkarar rakhne ki koshish dikhai padti hai. aaj hum sirf vartman mein jite hai aur vartman mein hi jeena chahte hai.

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  2. Adam se lekar aaj tak... samaj aur rishte badalte rahe hain... badalte rahenge... purane rishton kee peeth par pair rakh kar nai generation apne aasmaan ko kiss karengi... aise mein budhe bargad wala gaon waisa hi bana rahega... wahan ke log waise hi bane rahenge... yeh chrantan satya nahi hai... satya hai... change... badlao... naye samikaran zindgi ke saath... rishton ke saath...

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