सुना था,
कालिदास जिस डाल पर बैठे थे
उसी को काट रहे थे,
आज भी कालिदास अपनी जड़ों को काट रहे हैं।
लेकिन तब में और अब में एक फर्क है :
तब कालिदास मुर्ख थे ,समझे गए थे।
कुछ लोग कहतें हैं कि वे बेहद ज्ञानी थे, समझदार थे ,
दुनियां को जगाना चाहते थे।
लेकिन आज के कालिदासों का क्या करें
जो पेड़ों से गिरकर भी संभलने को तैयार नहीं हैं ।
उतर आयें हैं अपना अस्तित्व मिटाने पर।
सोच है दूसरे -मिटें तो मिट जायें ,पर वो बन जायें।
शेर ,चीते ,भालू तो सिमट रहे हैं तस्वीरों में,
कहीं अपनी भी तस्वीर न लटक जाये।
लेकिन किसे फिक्र है ,क्योंकर फिक्र है इसकी,
धरती गर्म होती है ,होने दो ,
आंच में कोई जलता है ,जलने दो।
पर उन्हें क्या मालूम
जिस दिन यह आग उनके घर तक जाएगी
उनका आशियाना भी उसी तरह जलाएगी।
अच्छा हो ,आज बादलों की बात हो ,
सबके घर-आँगन बरसात हो ,
चारो ओर पेड़ों की छाँव, नदियों की धार हो।
हरियाली से ही निकलेगा रास्ता ,
आगे बढें ,शुरुआत हो।
कालिदास मूढ़ मानवता का जीता जागता उदाहरण बन गये हैं।
ReplyDeleteghandhi ji ne kaha tha... humari dharti to har eak hi jarurton ko poora kar sakti hai lekin kissi eak ki lalach ko nahi...
ReplyDeletelalach to paschim se aaya hai... aur ab poorab wale usse apna rahe hain... iss sandarbh mein eak achhi rachna... samicheen... samsaamyik rachna...
hum vidyontma ke kalidas kab banenge... dekhna hai!
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ReplyDeleteglobal warming aaj ki ek jawalant samasya hai. paryavaran ko bachane ki disha main samaj ko jagruk karne ka laybadh prayas. aaj kalidas to bahut hain kami hai to bas vidyottmaon ki.
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ReplyDeletebahut hi saral aur prabhav purn rachna hai...
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