Tuesday, October 6, 2009

दादाजी और बरगद (बचपन की बातें )

जब कभी मैं अकेला होता हूँ
तो याद आता है अपना गाँव,
सपनों सा सुंदर गाँव ।
गाँव में थे दादाजी
और थी दाढ़ी वाले बरगद की छावं
ठीक नदी किनारे
जेठ की दोपहरी में जहाँ बैठा करता था सारा गाँव
गायों ,बैलों और बकरियों के संग
गर्मी की छुट्टियों में जब-जब जाता गांव
दादाजी के साथ खेतों में जाने को मचलता ,
कन्धों पर बैठने /बरगद की दाढ़ी पकड़कर लटकने की जिद करता ,
और जेठ की दुपहरी का डर दिखाते दादाजी ।
गांव तो आज भी है ,मैं भी हूँ ,
बस दादाजी नहीं हैं।
आज भी छुट्टियों में जब अपने गाँव जाता हूँ
वहां "कुछ" खोजता हूँ ,पर खोज नही पाता ,
एक "खालीपन " है जिसे भर नही पाता ।
लेकिन यह "खालीपन"एक अहसास है ,
अपनों के न होने का ,अपनों के संग होने का ।
फिरभी कभी-कभी टीस जाती हैं "वो यादें"
यादें जो दादाजी की तरह कन्धों पर बिठाती हैं ,
बरगद की छावं तक ले जाती हैं और
जेठ की दुपहरी की याद दिलाती हैं आज भी ................

5 comments:

  1. यादें जो दादाजी की तरह कन्धों पर बिठाती हैं ,
    बरगद की छावं तक ले जाती हैं और
    जेठ की दुपहरी की याद दिलाती हैं आज भी ................
    yaaden jo dil ko tees bhi deti hain,sukun bhi

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  2. Rashmijee,
    hausla badhane ke liye dhanywad.

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  3. apne dadaji ke bahane duniya ke sabhi dada ji ko yaad kiya aapne... lekin aane wale samay mein wo kavitaon mein... kahinyon mein simat kar reh jayenge kyonki eakal pariwar mein... khas taur par sehri parivesh mein... dada dadi... nana nani ke liye hum space kahan chhod rahe hain ! eak saartakh kavita...

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  4. बढ़ा दो अपनी लौ
    कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,

    इससे पहले कि फकफका कर
    बुझ जाए ये रिश्ता
    आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
    दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
    ओम आर्य

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  5. जब कभी मैं अकेला होता हूँ
    तो याद आता है अपना गाँव,
    सपनों सा सुंदर गाँव ।
    गाँव में थे दादाजी
    और थी दाढ़ी वाले बरगद की छावं

    सुंदर रचना ....अब नया कुछ डालें .....!!

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