Friday, July 17, 2009

खंडहर की सभ्यता

हरप्पा और मोहनजोदारो की खुदाई
मिले थे यहाँ प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के अवशेष
ये धरोहर हैं हमारे अतीत के ,
हमारी मान्यताओं के ,भावों और भावनाओं के
ना जाने ऐसे कितने ही विकसित सभ्यता के प्रतीक
आज सामने हैं हमारे
" खंडहर " के रूप में ।
सभ्यता की खोज !
खुदाई और उत्खनन की पुरानी और दुरूह प्रक्रिया से
मुर्खता नही तो और क्या है ?
आज के आधुनिक और स्वर्णिम विकास के युग में ,
हमने धरातल पर ही लगा दिए हैं
खंडहरों के अम्बार-
कहीं हिरोशिमा तो कहीं नागासाकी के बाज़ार
परमाणु की ताकत और उसकी विनाशक क्षमता से ।
हमने सोचा क्यों न फ़िर से बसा लें
एक छोटा सा खंडहरों का संसार
जहाँ हमारी आनेवाली पीढियां खोज पाएँगी
अपनी नई सभ्यता और संस्कृति के आधार
खंडहर ,खंडहर और खंडहर.

9 comments:

  1. अच्छी कविता, अच्छे भाव। खंडहरों को लेकर अतीत औऱ वर्तमान पर की गई बातें पसंद आई।

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  2. ऐसा क्‍यों न करें अब
    कि खंडहरों की जरूरत
    ही न पड़े
    ऐसा कुछ उपक्रम करें
    इसी दिशा में श्रम करें।

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  3. khandhar aur vikas ke baach ka aapka dwand chintan yogya hai... pehli baar mein kavita ke bhaaw nahin samaj paaya... kyonki iss kavita ko samajhne ke liye itihas ka boodh hona jaruri hai... achhi kavita ke liye badhai

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  4. राजीव जी, ब्लाग जगत में रचनाओं के तिनके जोड़ कर एक अपना घोंसला बनाने का आपका जतन सफल हो. ढेरों शुभकामनाएं.
    बस ब्लाग जगत के बाजों और बहेलियों से अपने स्वप्नों का घरौंदा बचा कर रखिएगा.

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  5. hausla aafjai ke liye aapsab ko bahut-bahut dhanyad
    RAJIV

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  6. Rajiv ji,
    aapka 'ghansala' dekh, mera banayi ek fiber art kee name plate yaad aa gayee..

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  7. खंडहरों का शहर ...विचार करने योग्य है ..!!

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  8. ऐसे कितने ही विकसित सभ्यता के प्रतीक
    आज सामने हैं हमारे
    " खंडहर " के रूप में ।
    ..........bahut khaas abhivyakti

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