मैं तो ईंट था
जब नींव में पड़ा
सक्रिय जीवन से
ले लिया सन्यास
निष्क्रिय रहकर
एक सक्रिय आधार बना .
जीता रहा
अपनों की याद लिए,
अपनों का साथ लिए ,
एक गुमनाम जिंदगी
आजीवन
औरों के लिए .
लेकिन
तुम तो मानुष थे,
तुम्हें तो बड़ा बनना था,
भला बनना था,
औरों के लिए जीना,
औरों के लिए मरना था.
किसी का सहारा बनना था .
फिर तुमने क्यों
अलग कर लिया
स्वयं को
अपनों की भीड़ से ,
जीते रहे
अपने-आप से अलग
एक एकाकी जीवन
अपने लिए
और
हो गए अमानुष
मैं तो ईंट था
ReplyDeleteजब नींव में पड़ा
सक्रिय जीवन से
ले लिया सन्यास
निष्क्रिय रहकर
एक सक्रिय आधार बना .....
sunder kavita, sunder vimb...
bahut khub likha hai aaapne....
ReplyDeleteachha laga padhkar.....
yun hi likhte rahein.........
-----------------------------------
ReplyDeletemere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
BAHUT GAHRI RACHNA........BADHAI!!
ReplyDelete